आज मानव समाज किस दिशा में जा रहा है,युवा पीढ़ी समाज को किस दिशा में ले जा रही है।यह समझ में नहीं आ रहा है।युवा पीढ़ी में इतना आक्रोश बढ रहा है,रिश्तों में टकराव बढ रहा है,सहनशीलता तो बिल्कुल भी नहीं है।आपस में इस तरह लड़ रहे है किसी भी रिश्तें में मान सम्मान की भावना नहीं है।क्योंकि आज समाज में एकल परिवार को युवा वर्ग दे रहा है,जिससे आपसी सद्भाव व सहयोग की भावना नहीं रही।अर्थात समाजवाद या परिवारवाद का स्थान पूर्णतः भौतिकवाद ले रहा है।पूरी जांच पड़ताल के बाद एवं दोनों पक्षों की शादी ब्याह में अथाह खर्च होने के बावजूद शादी के महीने दो महीने में टकराव शुरू हो जाता है,जिससे या तो रिश्तें टूट जाते है या पति पत्नी में से कोई एक या दोनों अपने अलग-अलग प्रेम प्रंसगों में उलझ जाते है।समाचार पत्रों में प्रेम प्रंसगों की आए दिन मसालेदार ख़बरें प्रकाशित होती रहती है।इन अवैध प्रेम प्रसंगों की परिणीति मारकाट तक पहुंच जाती है तथा आपस में एक दूसरे की हत्या कर दी जाती है या करवा दी जाती है।
यह क्या हो रहा है...!
इसकी मुख्य वजह सहनशीलता तथा धैर्य की कमी एवं आज हर इंसान कम से कम मेहनत अर्थात शोर्टकट से अपनी मंजिल हासिल करना चाहता है।वह मंजिल चाहे परीक्षा पास करके फर्जी डिग्री लेने की हो या नौकरी में तरक्की प्राप्त करने की हो या फिर अपने व्यवसाय को आगे बढाने की है।इन सब उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए इंसान को प्रकृति के बिना छेडछाड के अर्थात उपलब्धि प्राप्त करने के जो तयशुदा तौर-तरीक़े, कानून-कायदे हैं,उसी के अनुरूप ईमानदारी से एवं लगन से मेहनत करके वांछित उपलब्धि हासिल की जाये तो इंसान उपलब्धि का महत्व समझेंगा व अपने-अपने क्षेत्र में उत्तरोत्तर उन्नति करेगा।हर महान पुरूष बडे व्यवसायी या ऊंचें ओहदे वाले अधिकारी की कहानी यहींं बयां करती है।इसके अलावा आज तो इतने अपराध बढ रहे है वह केवल सहनशक्ति का अभाव जीने-रहने के तौर-तरीक़े का अभाव आदि है।इसके लिए विदेशों की तरह शिक्षा के प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रम पर्सनलिटी डवलपमेंट अर्थात व्यक्तित्व विकास के विषय का पठन-पाठन अति आवश्यक होना चाहिए।आज अधिकांश तो व्यक्तित्व विकास का वास्तविक अर्थ ही नहीं समझतें अर्थ मात्र शारीरिक विकास,व्यायाम आदि से समझते है,जबकि इसका अर्थ इसके शाब्दिक अर्थ में ही निहित है अर्थात व्यक्तित्व का विकास।इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत विद्यार्थी को रहन-सहन,खान-पान,बोल-चाल तथा यहां तक की समय विशेष पर आने वाले क्रोध को तत्काल कैसे नियंत्रित करें या तुरंत उसे कैसे डाइवर्ट करें यह तक शामिल है।कोई धन-दौलत या जमीन-जायदाद के लिए किसी के हाथ पैर काट रहा है,तो कोई जिंदा ही जला देते है तथा आये दिन बच्चों से लेकर बड़ो तक का अपरहण हो रहा है।क्या यह किताबों या उपन्यासों तक ही सीमित है की नर एवं नारी एक सिक्के के दो पहलू है,इसके विपरीत जबकि नारी आज पढ-लिखकर उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर बढ रही है उसी तेजी से उस पर अत्याचार बहुत ज्यादा हो रहे है।आज युवा वर्ग को चाहिए की नारी का सम्मान करें और उसे हर कदम पर सहयोग करें जिस समाज में नारी का इतना सम्मान किया जाता था आज उसकी हालत दयनीय है।आज भी हमारे समाज में बेटी के जन्म पर इतनी खुशियां नहीं मनाई जाती,जितनी बेटे के पैदा होने पर मनाई जाती है।आये दिन समाचार पत्रों में.पढ़ने को मिलता है की नवजात कन्याओं को कभी झाड़ियों में फेंक दिया जाता है कभी नाले में बहा दिया जाता है ।कभी कचरें के डिब्बें में फेंक दिया जाता है।अगर नारी जाति का इस गति एवं वीभत्स तरीके से अस्तित्व खत्म होता रहेगा तो वो दिन दूर नहीं जब जन्मदात्री का ही अंत हो जायेगा।परिणामतः सृष्टि का विनाश अवश्यंभावी है।यह समाज जब ही सुधर सकता है जब युवा वर्ग मन,कर्म,वचन से सोच कायम करे तथा दहेज विरोधी कानूनों का प्रशासन द्वारा अक्षरशः पालना सुनिश्चित हो।
-श्रीमती मंजू नारोलिया
जयपुर
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