6 मई निर्वाण दिवस पर विशेष
दलितों के उत्थान में जिन-जिन कारकों का योगदान रहा है उनमें शिक्षा, आरक्षण और संवैधानिक प्रावधान महत्त्वपूर्ण हैं। दलितों में शिक्षा की जोत राष्ट्रपिता महात्मा जोतीराव फुले ने जलाई, आरक्षण की शुरुआत कोल्हापुर नरेष छत्रपति शाहूजी महाराज ने की तो संवैधानिक प्रावधान भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ने लागू करवाये। इस त्रिमूर्ति (अर्थात् राष्ट्रपिता महात्मा जोतीराव फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज और बाबा साहेब अम्बेडकर ) ने दलितों के हित में जितनें कार्य किये, वे अविस्मरणीय हैं।
आरक्षण के जन्मदाता कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 ईस्वी को कोल्हापुर में हुआ था। आपके पिताजी का नाम श्रीमंत जयसिंह राव बाबा साहब घाटगे तथा माताजी का नाम रानी साहिबा राधाबाईजी था। आप कुर्मी जाति से थे जो हिन्दुओं की बनाई जाति व्यवस्था में चौथे पायदान, अर्थात् शूद्र वर्ण में आती थी। 17 वर्ष की अवस्था में आपका विवाह बडौदा राज्य की लक्ष्मीबाई से हुआ। 20 वर्ष की अवस्था में 2 अप्रैल 1894 में आपका राज्याभिषेक हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा राजकोट के कॉलेज में हुई थी तथा उच्च शिक्षा धारवाड़ में मिस्टर स्टुवार्ड मिटफोर्ड फ्रेजर की देखभाल में हुई जो एक कुशल आई.ए.एस अधिकारी थे।
राज्य में भ्रमण के दौरान आपने पाया कि उच्च वर्ग के अधिकारी दलित, शोषित और मजदूरों के साथ भारी दुर्व्यवहार करते हैं और तरह तरह से उनका शोषिण करते हैं।
आपने अपने शासन काल में सबसे बड़ा कार्य राज्य की शासन व्यवस्था में परिवर्तन करके किया। ’’शासन प्रशासन में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व होना चाहिये’’-आपका ऐसा मानना था। 1894 में जब आपने राजगद्दी संभाली, उस समय राज्य में 79.6 प्रतिशत ब्राह्मण, 8.6 प्रतिशत मराठे, 7.5 प्रतिशत मुसलमान और 10.6 प्रतिशत जैन आदि साक्षर थे। कोल्हापुर की दशा शोचनीय थी। जाति-पाति, छुआछूत, ऊँचनीच, मानवाधिकारों का हनन, किसानों एवं मजदूरों की दीन हीन दशा, चितपावन ब्राह्मणों द्वारा संचालित आतंकपूर्ण पाखण्डी धर्म पद्धति, वर्ण व्यवस्था का घोर ताण्डव नृत्य अबोध और अशिक्षित जनता को उबरने नहीं दे रहे थे।
इन सबसे निपटने के लिये आपने जनता को शिक्षित करना जरूरी समझा। 18 अपैल 1901 में आपने मराठाज स्टूडेण्ट्स इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्थाओं की स्थापना की और 47 हजार रू. खर्च करके भवन निर्माण करवाये। 1904 में जैन हॉस्टल, 1906 में मुस्लिम हॉस्टल और 1908 में अस्पृश्य क्लार्क हॅास्टल की स्थापना करके आपने गैर-ब्राह्मणों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे आने के अवसर प्रदान किये, जिससे कि ब्राह्मणों द्वारा धर्म के नाम पर फैलाये जा रहे अत्याचार, अनाचार और अन्धविश्वासों से जनता को मुक्ति मिल सके और आम जनता भी पढ़-लिखकर तथाकथित धर्मग्रन्थों की जालसाजी को पहचान सके और ब्राह्मणों की पोल खुले।
आपने ही सर्वप्रथम 26 जुलाई सन् 1902 को दलित, पिछड़े और निर्बल वर्ग के लोगों को सरकारी सेवाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया, जिसकी गूंज पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में सुनाई दी।
केसरी के सम्पादक बाल गंगाधर तिलक (जिसे पढ़ा-लिखा दलित तबका भटमान्य तिलक के नाम से पुकारता है) को शाहूजी महाराज द्वारा किये गये उक्त दलित हितैशी कार्य अच्छे नहीं लगे। कारण कि इससे ब्राह्मणों का वर्चस्व खत्म होता जा रहा था। अतः केसरी में उसने शाहूजी महाराज की निन्दा की। यह कैसी विडम्बना थी कि फ्रेजर महोदय ने अंग्रेज और विदेशी होते हुए भी शाहूजी महाराज के कार्यों की तारीफ की जबकि तिलक ने भारतीय होते हुए भी इनका विरोध किया।
आपके ही दिये टुकड़ों पर पलने वाले तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों को भी आपके द्वारा किये गये कार्य पसंद नहीं आये और आपको शूद्र कह कर अपमानित किया गया। कार्तिक स्नान हेतू जब आप पंच गंगा नदी पर राज परिवार के सदस्यों के साथ नहाने गये तो आप द्वारा ही नियुक्त राजपुरोहित ने वेदोक्त मंत्र न बोलकर पुराणों के मंत्र बोले। पूछने पर बड़ी धृष्टता से बोला कि आप भले ही राजा हैं, परन्तु वर्ण व्यवस्था के विचार से आप शूद्र हैं और शूद्र राजा के स्नान के समय वेद मंत्रों के बजाय पुराणों के मंत्र ही बोले जाते हैं। इससे क्रोधित होकर आपने उसकी तनख्वाह बंद करा दी और राजपद से बर्खास्त कर दिया।
शासन प्रशासनसन में आपने दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को नियुक्त किया तो इसका ब्राह्मण दीवान ने विरोध किया। इस दुष्प्रचार के विरोध में आपने जवाब दिया कि अनुभवहीन पिछड़े अधिकारी अविश्वसनीय ब्राह्मण अधिकारियों से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। आपने दलित वर्ग के एम.ए उत्तीर्ण विठोजी जाघव को सूरसभा का प्रोबेशनरी असिस्टेण्ट नियुक्त किया और आर.बी.सैविक्स को मुख्य राजस्व अधिकारी बनाया।
सन् 1891 ई. में महात्मा जोतीराव फुले के निर्वाण के पश्चात महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज को दिशा देने वाला कोई नहीं था। अतः आपने 1910-1911 में इसका गहन अध्ययन किया और 1911 में अपने राज्य में इसकी स्थापना की। आपने बाबा साहेब के पत्र मूकनायक को आर्थिक सहायता भी प्रदान की। 6 मई 1922 ई को कम उम्र में ही आपका देहान्त हो गया। आपके पश्चात् दलितोत्थान कार्य की बागडोर बाबा साहेब ने ही संभाली।
आज जिन सुख-सुविधाओं का उपभोग दलित समाज के लोग कर रहे हैं, वे हमें थाली में परोसकर पेश नहीं की गई थीं। आज लाखों दलितों का रहन-सहन काफी अच्छा है, पहनावा और खान-पान भी बहुत अच्छा है। इन सबके पीछे अवश्य ही हमारी त्रिमूर्ति जैसे महानायकों और युगपुरुषों का हाथ है। हमें चाहिये कि हम भी यथा संभव दलितोत्थान के काँरवे को आगे बढ़ाते रहें, पर किसी भी हालत में इसे पीछे नहीं जाने दें।
-श्याम सुन्दर बैरवा,
मो.8764122431
श्री एच लाल द्वारा लिखित मानवाधिकारों के संरक्षक हमारे महापुरुष और डॉ. विनय कुमार त्रिषशण द्वारा लिखित छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा 26 जुलाई 1874 ई.।