बाबा साहब – एक विलक्षण जीवन

 



 बाबा साहब के जन्म दिन पर पूरे भारत में एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इस अवसर पर अम्बेडकरवादी रैली, विचारगोष्ठी, सेमिनार तथा झाकियों का आयोजन करते हैं ताकि उनके अद्भुत जीवन से कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकें तथा आने वाली पीढ़ी को उनके जीवन तथा विचारों से अवगत करा सकें ताकि कल्याणकारी विचार धारा को आगे बढ़ाया जा सके।
 बाबा साहब का जन्म 14 अप्रैल, 1891 यानि आज से 122 वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के मऊ कस्बे में हुआ था। 16 अक्टूबर, 1956 को धर्मान्तरण किया- हिन्दू धर्म को छोड़कर बुद्ध धर्म को आत्मसात किया तथा 6 दिसम्बर, 1956 को परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। बाबा साहब आज किसी समय व स्थान के गुलाम नहीं हैं वह इनसे परे हैं। बाबा साहब कितने महान थे वो आप सभी लोग जानते हैं फिर भी मैं कुछ उदाहरण देना चाहूँगा। यों तो बाबा साहब को अपने देश से ज्यादा विदेशों में सम्मान मिला था और मिल रहा है। हमारे देश में तो बाबा साहब कुछ लोगों की आंखों के किरी बने हुए हैं। ये लोग उनका अपमान करने में भी पीछे नहीं रहते। खैर बाबा साहब हमारे लिए सदैव पूज्यनीय थे, हैं तथा रहेंगे।
जून-जुलाई 2012 में आऊटलुक पत्रिका समूह ने CNN-IBN तथा History 18 टीवी चैनलों के साथ मिलकर बीबीसी के सहयोग से भारत में आज तक का सबसे व्यापक सर्वेक्षण कराया जिसके नतीजे 15 अगस्त 2012 को घोषित किए गए। सर्वेक्षण के परिणामों ने बाबा साहब अम्बेडकर को “महानतम भारतीय” प्रमाणित किया। आप सभी लोग यह अनुमान लगा सकते हैं कि बाबा सहब कितने महान थे।
उनकी महानता उनके विचारों से झलकती है। तथा विचारों की पराकाष्ठा उनके द्वारा रचित संविधान से उजागर होती है। अगर संविधान की आत्मा जैसी कोई चीज है तो वह उसकी प्रस्तावना और उसी से अंबेडकरी विचारधारा झलकती है- बाबा साहब ने पूरा संविधान चारा सिद्धांतों पर रचा है- Liberty (स्वतंत्रता), Equality (समानता), Fraternity (बंधुत्व) तथा Social Justice (सामाजिक न्याय)। आज इन्हीं मूल्यों को आघात पहुंचाया जा रहा है। आरक्षण सामाजिक न्याय का सर्वश्रेष्ठ औजार है आज उसी को प्रभावहीन बनाया जा रहा है। बाबा साहब द्वारा हासिल किया हुआ महत्वपूर्ण अधिकार समाप्ति पर है। आज हालत यह है कि संविधान के ऊपर हर कदम पर आघात हो रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। मनुस्मृति द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था को ऊखाड़ फेंकने के लिए बाबा साहब द्वारा रचित संविधान को लागू किया गया था परन्तु मनुस्मृति को वापिस लाने की कोशिश हो रही है। जयपुर उच्च न्यायालय परिसर में मनु की मूर्ति स्थापित की गई, और न्यायालय कुछ नहीं कर सका या करना नहीं चाहता।
बाबा साहब ने अनेकों स्तर पर संघर्ष किया- सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा धार्मिक और सभी का लक्ष्य एक ही था- अहिंसात्मिक क्रान्ति द्वारा व्यवस्था परिवर्तन। बाबा साहब को इसकी जरूरत क्यों पड़ी। क्योंकि वो जिस समाज का नेतृत्व कर रहे थे वो समाज हर स्तर पर अलग-थलग था या यों कहें कि उसका मानवीय अस्तित्व ही नहीं था। यह वर्ग सामाजिक दृष्टि से बहिष्कृत, शिक्षा में अति पिछड़ा। इस समाज की कोई सांस्कृतिक विरासत नहीं, राजनीति में कोई स्थान नहीं आर्थिक रूप से भुखमरी के कगार पर। एक दम अधिकार विहीन समाज। ऐसे वर्ग के उत्थान के लिए काम करना बड़े साहस का काम था। उन्होंने इस वर्ग के उत्थान के लिए संघर्ष ही नहीं किया परन्तु सफलता भी हासिल की।
एक बार बम्बई में उनके द्वारा स्थापित सिद्धार्थ कालेज में 17 अगस्त, 1952 को मुख्य कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि-
“अछूतों के उत्थान के लिए जो संभव हो सकता था वह सब कुछ मैंने किया। मेरे कुछ कार्य सफल हुए तथा अन्य सफल न हो सके। लेकिन मैंने यह कार्य साहस के साथ जारी रखे। 25 वर्षों में जो कार्य मैंने किया वैसा काम किसी एक व्यक्ति ने कभी भी और कहीं भी नहीं किया होगा। मेरे कार्य की तीन सफलताएं थी- (1) अछूतों में स्वाभिमान की भावना का निर्माण करना। मेरे आन्दोलन के पूर्व अछूत समाज जानवरों से भी नीचे के स्तर पर था। उनमें स्वाभिमान की भावना जागृत की तथा अन्याय के विरुद्ध लड़ने की शक्ति एवं भावना पैदा की। यह कोई साधारण काम नहीं था। (2) दूसरी उपलब्धि- इस वर्ग को राजनैतिक अधिकार दिलाए। पहले हमें मन्त्रिपरिषद में झाडू लगाने की नौकरी भी नहीं मिलती थी आज मैंने उस वर्ग का मन्त्री ही बिठा दिया। (3) तीसरी सफलता शिक्षा के क्षेत्र में पहले अछूतों के लिए शिक्षा का हर दरवाजा बन्द था। वो दरवाजे मैंने खोल दिये।”
बाबा साहब अम्बेडकर का कुछ काम अधूरा है जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने दलित पिछड़े समाज को 3 कमान्डमेन्ट्स दिए- शिक्षित बनो- संघर्ष करो तथा संगठित रहो। बाबा साहब ने यह बीज मंत्र भगवान बुद्ध के धम्म के गहन अध्ययन के बाद दिया। जिस तरह से ईसा मसीह ने इसाइयों के लिए 10 कमानन्डमेन्ट्स दिए उसी प्रकार बाबा साहब ने मानव कल्याण के लिए 3 कमान्डमेन्ट्स दिए जो भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित तीन शरणों के सार पर आधारित हैं। ये तीनों कमान्डमेन्ट्स महात्मा बुद्ध द्वारा दी गई शरणों पर आधारित है।
बुद्धं शरणं गच्छामि - बाबा साहब ने कहा – Educate,
धम्मम् शरणं गच्छामि - धम्म- यानि Agitate
संघम् शरणं गच्छामि  -  Unite
 इन कमान्डमेन्ट्स को रखकर देखते हैं कि हमने क्या हासिल किया है- 
शिक्षित बनो- शिक्षा के क्षेत्र में कुछ कामयाबी मिली है परन्तु अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। दलित पिछड़ा भारत का सबसे कम पढ़ा लिखा समाज है। हम शिक्षित तो बनें परन्तु अंबेडकरी विचार धारा में नहीं। बाबा साहब व्यक्ति की तीन कुशलताओं पर जोर देते थे- हैण्ड (हाथ)- यानि कि व्यक्ति शारीरिक परिश्रम में निपुण हो, हर्ट(दिल)- करुणामयी हो तथा हैड(दिमाग)- उसकी सोच वैज्ञानिक हो। कुछ लोग किताबी शिक्षा हासिल करते हैं, आरक्षण का लाभ लेकर अपने ही समाज को छोड़कर भाग लेते हैं। इन सभी बातों को देखकर बाबा साहब ने आगरा के रामलीला मैदान में 1956 में कहा था कि मुझे पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया है।
संघर्ष करो- हम संघर्ष तो बहुत करते हैं परन्तु अक्सर यह दिशाहीन होता है। हमारी ज्यादा ऊर्जा अन्दरूनी कलह तथा आपसी प्रतिस्प्रर्धा में खर्च होती है। बाबा साहब का संघर्ष से मतलब कोई हड़ताल या घेराव नहीं था। उनका मतलब अपने समाज में व्याप्त बुराइयों से संघर्ष करना था इत्यादि।
संगठित बनो- इस दिशा में भी कुछ खास उपलब्धि नहीं मिली। दलितों के जितने में भी संगठन और वो काफी संख्या में है जिस जोशो खरोश से शुरु होते हैं उसी रफ्तार से टूट जाते हैं। बाबा साहब का बौद्ध आन्दोलन कहाँ है? समता सैनिक दल किस हालत में हैं? यही हाल बाबा साहब द्वारा गठित रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया का है आज उसके 11 धडे हैं। बाबा साहब के धार्मिक और राजनैतिक मिशन को बर्बाद करने वाले तथाकथित अम्बेडकरवादी ही हैं। हम इस जयन्ती के अवसर पर आत्म मंथन करें और जो गलतियाँ हो चुकी हैं उनसे कुछ सीख लेकर भविष्य में बाबा साहब के सपनों के भारत के लिए काम करने के लिए प्रतिज्ञा करें।
 यों तो हमारा हर कार्यक्रम बाबा साहब के नाम से शुरू होता है खत्म भी बाबा साहब के नाम से होता है। बाबा साहब को बीच में रखकर अपने आपको सबसे बड़ा अम्बेडकरवादी साबित करने में ऊर्जा का व्यय करते रहते हैं। एक बार अपने ही जन्मदिन के मौके पर बाबा साहब ने कहा कि मुझे मेरे भक्तों से बड़ा डर है। बाबा साहब ने एक बार कहा था कि कभी भूल से भी व्यक्ति की पूजा न की जाए। हाँ, व्यक्ति के महान कार्यों की प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए। पूजा से समाज आगे नहीं बढ़ता, बल्कि ऐसा समाज व्यक्तिवाद के भंवर में फंस जाता है। क्योंकि व्यक्ति समाज नहीं होता है वह केवल समाज का एक अंग है। इसलिए समाज के उत्थान के लिए किसी व्यक्ति विशेष की पूजा न करें। बाबा साहब को भक्त नहीं अनुयायी चाहिए। भक्त देवीकरण करते हैं और अपना काम खत्म समझते हैं। अनुयायी उनका अनुकरण करते हैं तथा उनके विचारों पर अमल करते हैं। अगर हमको बाबा साहब को अपने बीच जीवित रखना है तो उनकी विचारधारा का अनुकरण करें यही हमारा उस विलक्षण प्रतिभा का सम्मान होगा।
     जयभीम..!.जयभारत...!!


-अभिजीत कुमार  (से.नि. IRS)