ब्राह्मण भारत की आबादी के 3 प्रतिशत से भी कम हैं लेकिन जब से उन्होंने आर्यों के रूप में भारत में कदम रखा, पूरे देश के समस्त संसाधनों पर तो कब्जा किया ही किया, अपनी संस्कृति से भी देश को सराबोर कर दिया। इस देश की हर कायनात को अपने इशारों पर नाचने के लिए मज़बूर किया और भारतवासियों के जीवन के हर पहलू को अपने द्वारा गढ़े रीति व नीति के अधीन कर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सम्पूर्ण राष्ट्र पर शासन किया और कर रहे हैं। यह कारनामा ब्राह्मणों ने एकाध सदी के दौरान नहीं बल्कि लगभग 50 सदियों से लगातार करते आ रहे हैं। विश्व के दूसरे सबसे बड़े जनसंख्या बाहुल्य राष्ट्र के महज़ 3 प्रतिशत लोगों व एक मात्र जाति द्वारा रचा गया ऐसा प्रपंच, ऐसा आतंक, ऐसा मायाजाल, जादुई पैंतरों से सराबोर व चन्द पुस्तकों के दम पर इतने लम्बे समय तक किया गया शासन, विश्व की किसी भी अन्य संस्कृति में दृष्टिगोचर नहीं होता हैं।
क्या यह एक चमत्कार जैसा नहीं है? आप स्वयं सोचिए कि आपको इस दुनिया में लाने वाले माता-पिता की एक भी बात को मानने में आपको कितनी कठिनाई होती है लेकिन एक ब्राह्मण आपको किस तरह लम्बी-लम्बी यात्राओं पर भेजने में सक्षम है, आपसे पूजा-पाठ, धर्म-कर्म, दान-दक्षिणा के नाम पर हजारों खर्च करवाने में सक्षम है। और तो और, उसको खुद का भविष्य पता नहीं है पर आपका झूठा-सच्चा भविष्य बताकर आपसे अच्छी-खासी राशि ऐंठने में सक्षम है। एक ब्राह्मण आपसे संस्कारों के नाम पर मन चाहा दान ऐंठने व वह सब करवाने में सक्षम है जो आप अपनों के लिए लाख माथा पटकने पर भी नहीं करना चाहेंगें या फिर करने से पहले 100 प्रश्न पूछेंगें।
कभी अपनी या किसी और की शादी का वीडियो देखने बैठिए और फेरों इत्यादि का ‘सीन’ देखिए आपको खुद पता चल जाएगा कि आप ब्राह्मण के कहने मात्र से कैसे एक ‘रोबोट’ की तरह अटरम-सटरम उठा-उठा कर इधर-उधर रख रहे हैं, बिना एक भी प्रश्न पूछे कि ये सब व्यायाम आपको क्यों करना पड़ रहा है? आप इसे सम्मोहन कहेंगें, चमत्कार कहेंगें या सीधा-सीधा पागलपन कहेंगें! आप यही वीडियो किसी अन्य संस्कृति के विदेशी नुमाइन्दे को दिखाइए (जिसने कभी भी हिन्दू रीति-रिवाजों की शादी नहीं देखी हो) तथा उसके चेहरे पर आते-जाते भाव देखिए, आपको पता चल जाएगा कि वह इतना रोमांचित और विष्मित क्यों है? ऐसा क्या कर दिया ब्राह्मणों ने कि आप उनकी सहमति में इतना विश्वास करने लग गए कि आप हर मांगलिक कार्य बिना ब्राह्मण के मुहुर्त के नहीं करते? हम जानते हैं कि अन्य संस्कृतियों के या धर्मों के अनुयायी अपने मांगलिक कार्यों का समय निर्धारण केवल अपने परिवार के समस्त सदस्यों की सुविधाओं के अनुसार तय करते हैं लेकिन हिन्दू धर्म के अनुयायी केवल और केवल ब्राह्मण के कहे अनुसार करते है। यह एक ऐसी कुरीति है जिसके कारण समय पर नहीं पहुँचने की वज़ह से कितने ही रिश्तों में दरार आ जाती है। कितने ही अपने, अपनों के समारोहों में शरीक होने से रह जाते हैं या शरीक होने के लिए भारी अतिरिक्त नुकसान के भागी बनते हैं। कई बार एक साथ दो-दो रिश्तों के बीच में फँस जाते हैं। यह सब होता है एक ब्राह्मण के बताए मुहुŸार् के कारण! क्या यह एक कला का नमूना नहीं है कि ब्राह्मणों ने आपको उनका आदी बना कर रख दिया और अब दूर खड़े होकर हँस रहे हैं कि ‘‘देखो क्या मूर्ख बनाया है’’! क्या आपने ऐसा कभी सोचा है कि हिन्दूओं के अलावा सारा विश्व बिना किसी मुहुर्त के झंझट में फँसे अपने मांगलिक कार्य करवा रहा है, तो क्या उनके कार्य बिगड़ रहे हैं? और क्या मुहुर्त अच्छा होने के बावजूद कार्य नहीं बिगड़ने की कोई गारन्टी है?
ब्राह्मणों ने जाति और धर्म का ऐसा जाल बिछाया कि देश को हजारों जातियों में बाँट डाला। सबसे विस्मयकारी तथ्य यह है कि इन्होंने सदियों से इस व्यवस्था को मजबूत ही किया है, कमजोर नहीं होने दिया है। ऐसा विकट और राष्ट्र के जीवन के हरेक पहलू को अपने काबू में कर लेने वाला ‘‘फूट डालो, राज करो’’ का उदाहरण विश्व की अन्य किसी भी सभ्यता में नहीं मिलेगा। ‘ब्राह्मण इस देश को बेवकूफ बनाते आ रहे हैं’ यह तथ्य कम से कम क्षत्रिय व वैश्य समाज को तो पता लग ही गया होगा फिर भी वे इनके विरोध का साहस नहीं जुटा पाए। और अपने ही हित साध्ने के लिए इनके ढकोसलों का सदुपयोग करने में ही उन्हे अधिक लाभ मिलने की गुंजाइस दिखी।
आप सोचिए, यह कैसा मकड़जाल बुना है मात्र एक ब्राह्मण जाति ने? क्या आपको कभी अकेले में भी आश्चर्य नहीं होता? आप मुझे मेरी काबिलियत या मेरे नाम के बजाय मेरी जाति से अधिक अच्छी तरह से पहचानते हैं, यह आपको किसने सिखाया? यह चमत्कार किया है ब्राह्मणों ने!
आप ब्राह्मणों से चाहे घृणा करें लेकिन उनकी इन्हीं कुछ अतिरिक्त विधाओं से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। उन्होंने अपने आपको सर्वोŸाम सिद्ध करने के लिए जिस विधा का सबसे अधिक सहारा लिया है वह है- लेखन की विधा। और लेखन भी ऐसी प्राचीन भाषा में जिसे न वे पूरी तरह समझें न आप। नाम दे दिया मन्त्र या श्लोक का। करो माथा-पच्ची बैठ कर। फिर शासन की अपार शक्ति का सहारा लेकर उस लेखनी को समस्त समाज को पढ़ने के लिए मज़बूर किया। अनेकानेक भगवानों के मुख से अपने मनगढ़न्त विचारों को प्रवचन का रूप दिया जिसे आधुनिक युग में भी पाठ्यक्रमों का हिस्सा बना कर सब के लिए बचपन से ही कन्ठस्थ करने की बाध्यता खड़ी कर दी। स्वयं के प्रति अपराध को ‘सबसे बड़े पाप’ की संज्ञा देकर अपनी सामाजिक सुरक्षा का इन्तजाम पहले ही कर लिया। मन्दिरों में पूजन-हवन के कार्यों तथा घरों में सभी मांगलिक कार्यों के निष्पादन के कार्य में अपना एकाधिकार परिभाषित कर न केवल अपनी महत्व को जन-जीवन में व्याप्त रखा बल्कि अपनी पीढ़ीयों तक के लिए रोजी-रोटी का इन्तजाम भी कर लिया। दूसरों के लिए जो कार्य पाप हो गए उन्हीं का वे खुद मजे से दोहन कर रहे हैं। उनकी लड़कियाँ अधनंगी होकर नृत्य करें तो कला का बेजोड़ नमूना है, हमारी करें तो फूहड़पन या संस्कृति का नाश है! ब्राह्मण अभिनेत्रियों व मॉडलों की बाढ़ आई हुई है और उनमें पर्दे पर नंगा होने की होड़ लगी हुई है। पूनम पाण्डे, अनुष्का शर्मा महज एक मिशाल हैं।
शास्त्रीय गायन के रागों की घुण्डियाँ किसी भी सामान्य मस्तिष्क के मानव को पल्ले नहीं पड़े फिर भी इन्हें विश्व प्रसिद्ध बता दिया। आजकल लोग फिल्मों में गाने पहले गाते हैं और शास्त्रीय संगीत बाद में सीखने का प्रयास करते हैं तो क्या वे कलाकार नहीं हैं? लेकिन देखिए ब्राह्मणों की विधा उन्होंने इस प्राचीन मृतप्राय कला को भी सम्भ्रान्तों की कला बनाया हुआ है। और तो और इन्हीं शास्त्रीय कलाओं के लिए दुनियाभर की सरकार-पोषित अकादमियाँ खुलवा दी तथा इनके सर्वे-सर्वा बनकर जीवनभर व पीढियों के लिए धन्धे का इन्तजाम कर लिया। मीडिया को सही तरीके से भुनाकर इन्हें खूब पुरस्कार दिलवा कर अपने सभी बिरादरी भाइ-बहिनों के लिए खूब वाहा-वाही लूट रहे हैं।
उपरोक्त विधाएँ भारतीय जन-जीवन में ब्राह्मणों की सर्वव्यापकता की कुछेक ही बानगियाँ हैं। आप स्वयं सुबह उठने से लेकर सोने तक अपने कार्य-कलापों पर तीखी नज़र रखें और विश्लेषण करते रहें कि कौनसा काम आप बिना किसी कारण के और केवल औरों के बताए अनुसार कर रहें हैं। और ऐसा आप एकाध महिने तक करते रहें। आप स्वयं ब्राह्मणों की छाया अपने जीवन में महसूस करेंगें। छींकना, आँखों का फड़कना, बाहर निकले समय किसी का टोकना, दाएँ या बाएँ अंगों का ध्यान रखना, सुबह-शाम मन्दिरों की धूल चाटना, घर में या कार्यालयों में निर्थक मन्त्रोच्चार कर या हाथ जोड़कर कार्य प्रारम्भ करना, रास्तों में पड़ने वाले (अतिक्रमण द्वारा बनाए गए) मन्दिरों की ओर देखकर हाथ जोड़कर निकलना, और भी हास्यास्पद हरकत है बस में, दुकान में ट्यूबलाइट जलाने या जलने पर उस कृ़त्रम रोशनी को ही हाथ जोड़ना! यह सब आपने कैसे प्रथम बार किया इसका पश्चावलोकन करें आपको बड़ा मजा़ आएगा!
यहाँ हम यह विश्लेषण करने का प्रयास कर रहें है कि ब्राह्मणों ने वे कौनसे नुस्खे काम में लिए जिनसे उन्होंने ये जादू पूरे देश पर कर डाला कि सब रोबोट की तरह उनके बताए रास्तों पर चले जा रहे हैं। हमारे बीच भी ऐसे ही बुद्धिजीवी हैं जो खूब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन निर्थक पूजा-पाठ और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा से अपने आप को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। यह अन्ध-भक्ति कब मिटेगी यह तो कहना मुश्किल है परन्तु आपकी आँखें खोलने का हमारा प्रयास जारी रहेगा इतना तो तय है। और हाँ, यह बात भी आपके विवेक पर ही छोड़ी जा रही है कि आप स्वयं यह तय करें कि ब्राह्मणों ने वे कौनसी तकनीकें काम में ली जिसके बदौलत वे आज तक पूरे राष्ट्र को अपनी उँगलियों पर नचाते आ रहे हैं !
हमने ब्राह्मणों की भारतीय जन-जीवन में सर्वव्यापकता की चर्चा की तथा कैसे हिन्दू धर्मावलम्बी ब्राह्मणों के विचारों के गुलाम बने हुए हैं तथा इस जाल में हमारे समाज के भी बड़े-बड़े धुरन्धर पढ़े-लिखे, नौकरशाह तथा उद्योगपति फँसे हुए हैं। वैसे तो वे बाबा साहब अम्बेडकर की तश्वीर भी घर में लटका कर रखते हैं परन्तु दुर्भाग्यवश बाबा साहब का ज्ञान उनको छू भी नहीं गया है। वे न केवल ब्राह्मणवादी शकुन-अपशकुन पर विश्वास करते हैं बल्कि बाकायदा वृत इत्यादि भी करते हैं और सफेद झूठ रूपी कथाओं पर भी जबरदस्त चर्चा करते हैं। इतनी चर्चा यदि ये अपनी और अपने समाज की उन्नति की चर्चा करते तो शायद आज स्वयं ही ब्राह्मण-स्वरूप हो गए होते! इतना ही नहीं, हद तो जब हो जाती है जब ये कुम्भ स्नानवालों की लाईन में भी सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं चाहे सड़े हुए महा-संक्रमित पानी में ही डुबकी लगा कर चर्मरोगों का भागी ही क्यों न बनना पड़े!
खैर, हम अपने ही इन महान प्राणियों के बखान में अधिक स्याही खराब नहीं करेंगें क्योंकि इनमें से कुछ तो अज्ञानता का शिकार हैं लेकिन कुछ ने तो जानबूझ कर आँखों पर पट्टी बाँध रखी है, तथा कुछ यूँ ही ढोंग कर अपने आप को ब्राह्मण समझ-समझ कर इतराते रहते हैं जबकि ब्राह्मण मित्र इनको चढ़ा कर रखते हैं ताकि अपना काम निकलवाया जाता सके। बाद में इनकी मूर्खता पर अकेले में खिलखिलाते हैं। आईए अब कुछ इस बारे में बात करते हैं जिस छोर से हमने पिछले लेख को छोड़ा था। आशा है आपने भी कुछ बिन्दू खोज निकाले होंगें जो कि ब्राह्मणों के सर्वोच्च बनकर उभरने का कारण बने। कुछ बिन्दू यहाँ दिए जा रहे हैं लेकिन ये अन्तिम नहीं हैं।
1. फूट डालो राज करो और प्रभावितों को हवा भी न लगने दो (दूसरों के बारे में थोड़ी सी चर्चा कर चिंगारी लगा कर दूर खड़े होकर तमाशा देखना ताकि सीधे-सीधे अभियुक्त बनने से बचा जा सके।)
2. वर्तमान के प्रत्येक कार्य को भविष्य की सोच रखकर करना, ताकि कमजोरियों को भी शक्तियों में तब्दील किया जा सके।
3. पाखण्ड को एक कुशल हथियार बनाना- (‘राम-राम’, ‘राधे-राधे’, ‘जय श्री कृष्ण’ इत्यादि बोलकर स्वागत करने का प्रचलन करवाना, हर काम से पहले पूजा-पाठ, खोपड़ी को जबरदस्ती दश रंगों से रंगे रखना, पीत-वस्त्र पहनना, कपड़ों पर ‘राम-राम’ इत्यादि लिखकर भक्त होने का दिखावा करना इत्यादि)।
4. पाखण्डों को जीवित रखने के लिए धर्म-संसद, जागरण, कलश यात्राओं, कथाओं इत्यादि का आयोजन करवाते रहना ताकि धर्मान्धों के दिलों से पाखण्डों की याद धूमिल न पड़े।
5. सामाजिक संगठनों में अपनी बिरादरी की सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए दूरदर्शी योजनाएं बनाना तथा उनको मूर्तरूप देना।
6. ब्राह्मणवादी संगठनों में हमेशा नयापन लाते रहना ताकि ‘अलग’ बने रहा जा सके।
7. एक दूसरे की हर हाल में सहायता करना- सामाजिक, राजनीतिक, राजकीय या निजी सेवा, हर क्षेत्र में एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहना चाहे राजनीतिक सोच कुछ भी हो, जाति को सर्वाच्च प्राथमिकता देना।
8. प्राचीन मनुवादी सोच (जैसे जातिवाद, छुआछूत, स्वयं की जाति की सर्वोच्चता, वेद, रामायण, महाभारत इत्यादि की महानता का बखान करना तथा उनकी ही शिक्षाओं को सर्वोच्च बताना इत्यादि) को हमेशा मस्तिष्क में रखना तथा उसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना।
9. अपनी जनसंख्या के हिसाब से मन्दिरों की संख्या भी बढ़ाते जाना ताकि निखट्टू संतानों का भी पेट भरता रहे।
10. मन्दिरों को राजनीति का अखाड़ा बना कर रखना ताकि अपनी बातों को मनवाने के लिए भगवान इत्यादि का तुरन्त सहारा लिया जा सके।
11. अपने दो पैसे के विचारों को भी ऐसे पेश करना जेसे बड़ा बुद्धिमŸापूर्ण विचार है तथा दूसरों के विचारों को सार्वजनिक रूप से तो खिल्ली में उड़ा देना लेकिन अच्छा होने पर ‘हाइजैक’ कर दूसरी जगहों पर वाहा-वाही लूटना!
12. छोटे-छोटे मुद्दों को बड़ा बना कर उठाना और स्वयं नेता बन जाना या उस विषय पर बोलने वाला विशेषज्ञ बन जाना।
13. हवा देखकर धन्धे बदल लेना ताकि दूसरों के धन्धे छीने जा सकें और उनके काम बिगाड़े जा सकें।
14. ऐसी भाषा का प्रयोग करना जिसके स्पष्टीकरण के लिए भी इन्हीं की मदद लेनी पड़े ताकि इनकी महत्ता कभी फीकी न पड़े।
15. तुरन्त प्रतिकार नहीं करना, बात दिल में रखना और मौका देखकर पीठ पीछे वार करना।
16. सही समय पर क्रोध पर काबू पाना ताकि तुरन्त नुकसान से बचा जा सके।
17. शक्तिशाली का आधिपत्य स्वीकार कर उसे बाद में अपनी उँगलियों पर नाचने पर मजबूर कर देना। साथ ही अपने सारे विरोधियों का नाश करवा देना।
18. झूठ को भी इस तरह बोलना कि वह सच लगे तथा काम बिगड़ने पर दूर हट जाना और किसी और को अपराधबोध करवा देना।
19. स्वयं वार नहीं करना लेकिन जिसे मारना है उसको पता भी नहीं चलने देना कि इसके पीछे किसी ब्राह्मण का भी हाथ हो सकता है।
20. बनावटी नम्रता का दिखावा करना, (इतना झुक कर अपना काम निकाल लेंगें कि आपको भान ही नहीं होने देंगें)
21. पीढी दर पीढी गिरगिट का स्वभाव बनाए रखना तथा जैसा वक्त पड़े वैसा ही बन जाना।
22. अपने निम्नतम कार्य को भी सर्वोच्च बता कर पेश करना तथा इतनी बार दोहराना कि दो-चार और लोग भी वैसा ही बोलने लग जाएँ।
उपरोक्त बिन्दुओं में से कुछ तो ऐसे हैं जिनका अनुसरण करना खतरे से खाली नहीं हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम भी सर्वोच्च बनने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। बिन्दु कुछ और भी हो सकते हैं जिनकी तुलना हम हमारे कामों से कर उन्हें इच्छानुसार बिगाड़ या सुधार सकते हैं।
खैर, हम अपने ही इन महान प्राणियों के बखान में अधिक स्याही खराब नहीं करेंगें क्योंकि इनमें से कुछ तो अज्ञानता का शिकार हैं लेकिन कुछ ने तो जानबूझ कर आँखों पर पट्टी बाँध रखी है, तथा कुछ यूँ ही ढोंग कर अपने आप को ब्राह्मण समझ-समझ कर इतराते रहते हैं जबकि ब्राह्मण मित्र इनको चढ़ा कर रखते हैं ताकि अपना काम निकलवाया जाता सके। बाद में इनकी मूर्खता पर अकेले में खिलखिलाते हैं। आईए अब कुछ इस बारे में बात करते हैं जिस छोर से हमने पिछले लेख को छोड़ा था। आशा है आपने भी कुछ बिन्दू खोज निकाले होंगें जो कि ब्राह्मणों के सर्वोच्च बनकर उभरने का कारण बने। कुछ बिन्दू यहाँ दिए जा रहे हैं लेकिन ये अन्तिम नहीं हैं।
1. फूट डालो राज करो और प्रभावितों को हवा भी न लगने दो (दूसरों के बारे में थोड़ी सी चर्चा कर चिंगारी लगा कर दूर खड़े होकर तमाशा देखना ताकि सीधे-सीधे अभियुक्त बनने से बचा जा सके।)
2. वर्तमान के प्रत्येक कार्य को भविष्य की सोच रखकर करना, ताकि कमजोरियों को भी शक्तियों में तब्दील किया जा सके।
3. पाखण्ड को एक कुशल हथियार बनाना- (‘राम-राम’, ‘राधे-राधे’, ‘जय श्री कृष्ण’ इत्यादि बोलकर स्वागत करने का प्रचलन करवाना, हर काम से पहले पूजा-पाठ, खोपड़ी को जबरदस्ती दश रंगों से रंगे रखना, पीत-वस्त्र पहनना, कपड़ों पर ‘राम-राम’ इत्यादि लिखकर भक्त होने का दिखावा करना इत्यादि)।
4. पाखण्डों को जीवित रखने के लिए धर्म-संसद, जागरण, कलश यात्राओं, कथाओं इत्यादि का आयोजन करवाते रहना ताकि धर्मान्धों के दिलों से पाखण्डों की याद धूमिल न पड़े।
5. सामाजिक संगठनों में अपनी बिरादरी की सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए दूरदर्शी योजनाएं बनाना तथा उनको मूर्तरूप देना।
6. ब्राह्मणवादी संगठनों में हमेशा नयापन लाते रहना ताकि ‘अलग’ बने रहा जा सके।
7. एक दूसरे की हर हाल में सहायता करना- सामाजिक, राजनीतिक, राजकीय या निजी सेवा, हर क्षेत्र में एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहना चाहे राजनीतिक सोच कुछ भी हो, जाति को सर्वाच्च प्राथमिकता देना।
8. प्राचीन मनुवादी सोच (जैसे जातिवाद, छुआछूत, स्वयं की जाति की सर्वोच्चता, वेद, रामायण, महाभारत इत्यादि की महानता का बखान करना तथा उनकी ही शिक्षाओं को सर्वोच्च बताना इत्यादि) को हमेशा मस्तिष्क में रखना तथा उसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना।
9. अपनी जनसंख्या के हिसाब से मन्दिरों की संख्या भी बढ़ाते जाना ताकि निखट्टू संतानों का भी पेट भरता रहे।
10. मन्दिरों को राजनीति का अखाड़ा बना कर रखना ताकि अपनी बातों को मनवाने के लिए भगवान इत्यादि का तुरन्त सहारा लिया जा सके।
11. अपने दो पैसे के विचारों को भी ऐसे पेश करना जेसे बड़ा बुद्धिमŸापूर्ण विचार है तथा दूसरों के विचारों को सार्वजनिक रूप से तो खिल्ली में उड़ा देना लेकिन अच्छा होने पर ‘हाइजैक’ कर दूसरी जगहों पर वाहा-वाही लूटना!
12. छोटे-छोटे मुद्दों को बड़ा बना कर उठाना और स्वयं नेता बन जाना या उस विषय पर बोलने वाला विशेषज्ञ बन जाना।
13. हवा देखकर धन्धे बदल लेना ताकि दूसरों के धन्धे छीने जा सकें और उनके काम बिगाड़े जा सकें।
14. ऐसी भाषा का प्रयोग करना जिसके स्पष्टीकरण के लिए भी इन्हीं की मदद लेनी पड़े ताकि इनकी महत्ता कभी फीकी न पड़े।
15. तुरन्त प्रतिकार नहीं करना, बात दिल में रखना और मौका देखकर पीठ पीछे वार करना।
16. सही समय पर क्रोध पर काबू पाना ताकि तुरन्त नुकसान से बचा जा सके।
17. शक्तिशाली का आधिपत्य स्वीकार कर उसे बाद में अपनी उँगलियों पर नाचने पर मजबूर कर देना। साथ ही अपने सारे विरोधियों का नाश करवा देना।
18. झूठ को भी इस तरह बोलना कि वह सच लगे तथा काम बिगड़ने पर दूर हट जाना और किसी और को अपराधबोध करवा देना।
19. स्वयं वार नहीं करना लेकिन जिसे मारना है उसको पता भी नहीं चलने देना कि इसके पीछे किसी ब्राह्मण का भी हाथ हो सकता है।
20. बनावटी नम्रता का दिखावा करना, (इतना झुक कर अपना काम निकाल लेंगें कि आपको भान ही नहीं होने देंगें)
21. पीढी दर पीढी गिरगिट का स्वभाव बनाए रखना तथा जैसा वक्त पड़े वैसा ही बन जाना।
22. अपने निम्नतम कार्य को भी सर्वोच्च बता कर पेश करना तथा इतनी बार दोहराना कि दो-चार और लोग भी वैसा ही बोलने लग जाएँ।
उपरोक्त बिन्दुओं में से कुछ तो ऐसे हैं जिनका अनुसरण करना खतरे से खाली नहीं हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम भी सर्वोच्च बनने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। बिन्दु कुछ और भी हो सकते हैं जिनकी तुलना हम हमारे कामों से कर उन्हें इच्छानुसार बिगाड़ या सुधार सकते हैं।
-सीताराम स्वरूप