देश की मीडिया और कुछ राजनीतिक दल एवं कट्टरपंथी संगठन यदि नफ़रत के बीज बोते हैं तो यह आम जनता को पहचानना चाहिये कि दुश्मन कौन हैं, ख़ासकर पढ़े लिखें लोगो से उम्मीद ज्यादा होती हैं कि वो इन नफरतों का स्वीकार नही करें। पढ़े लिखे लोगो की यह भी जिम्मेदारी हैं कि युवा पीढ़ी को भी ऐसी साम्प्रदायिक(कम्यूनल) नफ़रत से प्रभावित ना होने दे। युवा पीढ़ी को ऐसे संगठनों की गतिविधियो में भाग लेने से रोकें उनके सदस्य बनने से रोकें। सामान्यतया 12 से 25 साल के युवाओं को ज्यादा टारगेट किया जाता हैं। साम्प्रदायिक संगठन लोगो को मानसिक रूप से हिंसक बनाने के लिए धर्म एवं संस्कृति के खतरे में होने का आभास करवाते हैं जोकि उनकी चाल होती हैं। लोगो को एकतरफ़ा सोचने को विवश करते हैं इसके लिए बहुत से हिंसक वीडियो और फ़ोटो और जाली कहानियां बनाकर लोगो को सोशल मीडिया के जरिये दिखाया जाता हैं। इतिहास और तथ्यों को गलत रूप में लोगो को कई बार, कई माध्यमों से बताया जाता हैं कि लोग उसी को सही मानने लगे जाते हैं।
साम्प्रदायिक संगठन सदस्यों का धर्म की रक्षा की भ्रामक चीजों के लिए ब्रेन वाश करते रहते हैं। इन्हें हिंसक बनाते रहते हैं। संगठनों के पदाधिकारि अधिकांशतया राजनीतिक पहुंच के होते हैं, संगठन में शामिल लोगों की बहुत छोटी बढ़ी समस्याओं(जैसे ट्रांसफर सही जगह करवाना, ट्रांसफर रुकवाना, मोहहले में लाइट ठीक करने के लिए फोन कर देना....वगैरहा वगैरहा) को ये राजनीतिक लोग अपनी पहुँच के कारण आसान कर देते हैं जिससे सदस्य प्रभावित होते हैं और इनके हर कार्य का समर्थन करने लग जाते हैं। कही भी तोड़ फोड़ करनी हो, धरना देना हो, भिड़ इक्कठी करनी हो, रास्ता रोकना हो, नारे लगाना हो, या मार पिटाई करनी हो, पुतला फूंकना हो, दंगा करवाना हो जैसे कार्य मे इन्हें इस्तेमाल किया जाता हैं। इन संगठनों द्वारा पत्र-पत्रिकाओं, न्यूज़ चैनल के जरिये भी भ्रामक तथ्यों को फैलाया जाता हैं कि अच्छा खासा पढ़ा लिखा व्यक्ति ग़ुमराह हो जाता है।
आम जनता में अधिकांश लोग इतिहास नही पढ़े होते हैं, यदि कुछ पढ़े होते हैं तो केवल नंबर लाने के हिसाब से पढ़ते हैं। इसलिए जनता को ग़ुमराह करना बहुत आसान हैं। भीड़ के सामने कुरेक्ट करने वाले व्यक्ति की आवाज दब जाती हैं।
बहुत से प्रभावित व्यक्ति न्यूज़ चैनल में भी होते हैं, या उन्हें बैकडोर से काफी पैसा, और मनोबल मिलता हैं इसलिए बहुत से पत्रकार न्यूज़ चैनल में जब हिँसक बातें करने लगें, सरकार को डिफेंड करने लग जाएं, डिबेट में शामिल लोगों पर चीखने चिल्लाने लगे जाएं एवं उन्हें बेज्जत करने लगें, डिबेट में अधिकांश समय हंगामा करवाने लगें, बहस के टॉपिक में हमेशा नफरतों को जगह दी जाने लगें, देश के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए चैनल पर आए दिन यूद्ध होने का माहौल, सेनाओं की तैयारी, बेमतलब के मुद्दों को चैनल पर दिखाया जाना तो समझ जाना चाहियें की उस चैनल पर पत्रकारिता खत्म हो चुकी हैं, अब वह किसी पार्टी विशेष का मुखपत्र की तरह कार्य कर रहा हैं।संगठनों एवं राजनीतिक लोगो द्वारा नफरतों के बीज बो कर आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं अन्य मिडल ईस्ट के देश ऐसे हैं।
यदि जनता समय पर ऐसी कम्युनल फोर्सेस का साथ नही छोड़ती हैं और उनकी गतिविधियों को उचित ठहराने लगती हैं तो याद रखें हम खुद एक पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसा देश तैयार कर रहे हैं।हो सकता हैं ऊपर बताई गई बातें कईओ को समझ ना आये एवं भाषण मात्र लगें लेक़िन इससे लेखक की सेहद पर कोई फर्क नही पड़ता हैं, समझना तो हिंसक ही रहे लोगो को पड़ेगा क्योंकि जिस देश को आप प्रेम करते हो उसका सत्यानाश कम्यूनल फ़ोर्सेस ऐसे हिंसक लोगो से ही करेंगी। भड़काने वाले संगठन और राजनीतिक नेता के कोई खरोंच तक नही आएगी।इसलिये इस देश को बर्बाद होने से रोकिये, जो अंग्रेजो ने किया था वो अब दुबारा ना होने दे। बेशक अंग्रेज चले गए हैं, उनकी जगह इन्होंने ले ली हैं। कार्यशैली इन संगठनों और राजनेताओं की वैसी ही हैं जैसे विरोधी-आवाज को दबा देना, साम्प्रदायिकता का इस्तेमाल, सत्ता बनाये रखने के लिए हिंसा, उपद्रव, युध्द करवाना और लोगो के बीच खाई पैदा करना, पद का लालच, रसूख का लालच देना, धन का लालच, राजनीतिक बंदी बनाना, गोलीबारी करवाना, शांति प्रदर्शनों को दबाना या हिंसक करवा देना।
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मदनलाल कासोटिया
जैसा बीज, वैसी फसल