सच बताना ? कोई मरीज हॉस्पिटल में ठीक होते ही वह सबसे पहले मन से किसका लाख लाख शुक्रिया अदा करता है? किसकी चौखट पर ढोक देने की सोचता है? उस समय डॉक्टर व स्टाफ तो आसपास दिखते रहते है इसलिए उन्हें हाथ जोड़ना उसकी मजबूरी हो जाती है वरना दिल के हर कोने से धन्यवाद तो वह काली कम्बली वाले बाबा या अपने दिमाग में फिट किए गए आराध्य या उसी काल्पनिक अदृश्य शक्ति को ही देता है।देर काहे की, होस्पिटल का बेड छोडऩे से पहले ही वह प्रसादी बांट लेता है।
इस सदी की भयावह कोरोना त्रासदी में मेडिकल डॉक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ पिछले डेढ़ महीने से अपनी जान जोखिम में डालकर मानवता को बचाने की महान सेवा कर रहे हैं।
घरों में हम सुरक्षित है हमें इन देवदूतों के जोखिम भरे काम का सही अंदाजा भी नहीं होगा कि मुश्किल हालात में वे किस लग्न व समर्पण से मरीजों की सांसें जिंदा करने का पुण्य कार्य कर रहे हैं।हास्पिटल से बाहर भी शहर की संकरी गलियों के ऊंचे मकानों की घनी आबादी में खुद को इंफेक्शन व इंसानी हमलों से बचाते हुए काम करना कितना मुश्किल होता है. लेकिन अपने परिवार से दूर रहकर पिछले कई दिनों से कोरोना को हराने का इनका हौसला हिमालय से भी ऊंचा लगता है।
दरअसल मेडिकल प्रोफेशन को भारतीय समाज में वह सम्मान नहीं मिला जिसका वह हकदार है क्योंकि यहां सारा श्रेय प्रशासक, राजनेता, धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वास के कारण ढोंगी लोगों व काल्पनिक शक्तियों को मिल जाता है।
आमजन को इतना अंदाजा भी नहीं होता है कि एमबीबीएस. एमडी. एमएस या नर्सिंग स्टाफ को अपनी एजुकेशन पूरी करने के दौरान ढेरों किताबें पढने के साथ प्रैक्टिकल में स्वयं को पूरी तरह झोंकना पड़ता है।न रात का पता चलता है न दिन का। पेट की भूख व परिवार को तो मानो भूल ही जाता है और आधी उम्र इसी में बीत जाती है।प्राइवेट मे तो पहाड़ जितना पैसा चुकाने पर डॉक्टर बन पाते है।
जबकि दूसरी सेवाओं में लोग इस उम्र तक कई साल की नौकरी कर काफी धन जोड़ चुके होते हैं।लंबे समय तक पढ़ाई व रात दिन की कड़ी मेहनत के बाद जब समाज में एक डॉक्टर या नर्स नौकरी के लिए आते हैं तो अमीर अपने धन का रौब बताता है तो एक छूटभैया राजनेता भी सत्ता के खौफ से डराता है।और सैलेरी कितनी ? डॉक्टर को बीस पच्चीस हजार और नर्स को पाच सात हजार रुपये।इतना तो एक पानी पतासे की थड़ी लगाने वाला अनपढ भी कमा लेता है।देवदूतों का ऐसा सम्मान दुनिया में शायद ही कहीं और होता होगा।
शिक्षा के बाद मानव सेवा के लिए समाज में उतरने वाले ये लोग भ्रष्ट व भेदभावपूर्ण व्यवस्था की मार से टूट जाते है, सारे आदर्श धराशाई हो जाते हैं।समाज को यह सच स्वीकार करना चाहिए कि इस प्रोफेशन को वह आर्थिक सुरक्षा व सम्मान नहीं दिया जिसका यह हकदार है।
लेकिन आज इस भयंकर दौर में सुरक्षा साधनों की कमी के बावजूद मेडिकल व पैरा मेडिकल टीम ने मानवता की सेवा कर जो मिसाल कायम की है उसे इतिहास में सुनहरे पन्नों में लिखा जाएगा, एक अमर कहानी होगी।इन देवदूतों की महान सेवाओं को हम सब नमन करते हैं।
सबका मंगल हो.....सभी निरोगी हो
डॉ. एम. एल .परिहार