चलो शहर की ओर

एक दिन करौली के एक छोटे से गाँव का मुकेश मिस्त्री किसी के हवाले से मेरे पास काम माँगने के लिए आया। मुकेश वैसे तो ‘‘कला संवर्ग’’ में सीनियर सैकण्डरी तक शिक्षित है लेकिन इसके सिवा उसको अपने आप में कोई ‘‘कला’’ विकसित होती नहीं दिखी तो आखिरकार वह परिवार पालने के लिए मिस्त्री ही बन गया! मैंने अपने किसी निर्माण कार्य में लगे मित्र से उसकी सिफारिश की तो मुकेश को काम भी मिल गया। चूँकि उसने गाँव में ही कारीगरी का काम किया था तो हाथ तो उतना साफ नहीं था लेकिन, जैसा कि मित्र ने बाद में बताया कि वह परिश्रमी बहुत था, तो उसकी दाल गलती चली गई। मुकेश धन्यवाद वगैरह देने या कभी-कभी गैस का सिलिन्डर इत्यादि लेने मेरे यहाँ आता रहता है तो उससे कई बार विस्तृत चर्चा भी हो जाती है। मुकेश के 5 बच्चे हैं। पाँचो बेटे ही हैं! मैंने आदत से मजबूर होकर पूछा कि भई आप तो पढ़े-लिखे हो और तुम्हारी उम्र भी अधिक नहीं है तो कम से कम जागरूक भारत में ही जन्में हो फिर इस फौज का क्या राज है? इन्होंने कहा कि सर, मेरे साथ उल्टा हुआ। लोग लड़कियाँ तब तक पैदा करते जाते हैं जब तक कि लड़का ना जन्म ले ले और मैं लड़के जब तक पैदा करता चला गया जब तक कि कोई लड़की जन्म ना ले ले! खैर, जैसा उसने बताया कि वे स्वयं पाँच भाई हैं और 5-6 बीघा ही जमीन है तो गाँव में खाने के लाले ही पड़े रहते थे। ना खेती से गुजारा हो और ना ही कोई ऐसा स्थाई रोजगार है जिसके दम पर मुकेश को कोई राहत मिले। तो उसको गाँव छोड़ने के अलावा कोई उपाय नहीं सूझा। 
अब आते हैं मुद्दे की बात पर! मेरा यह मानना है कि गाँव छूटा और विकास हुआ! जो गाँव से आज भी चिपके हुए हैं वे केवल सवर्ण वर्ग के या धनी पिछड़े वर्ग के रटे-रटाए जवाब आपको देते रहते हैं और गाँव मे रहने के ऊल-जुलूल फायदे गिनाते रहते हैं। लेकिन ये हमें अब वास्तविकता जान लेनी चाहिए और हमारे दूसरे   भाई-बहनों को भी समझा देनी चाहिए कि हमारे लोगों का तो केवल और केवल शहर में पहुँच कर ही उद्धार है। गाँव मतलब दिमाग और प्रगति दोनों के दरवाजे बंद। जैसा कि मुकेश के उदाहरण से स्पष्ट है कि गाँव में-
* शिक्षा का अभाव, संसाधनों का अभाव और चिकित्सा और स्वच्छता के संसाधनों का अभाव।
*दकियानूसी सोच, पुराने समय से चले आ रहे आडम्बरों से फिजूल खर्ची और इनसे बाहर निकलने के रास्ते बंद।
* रोजगारों की भारी कमी और पढ़े-लिखे बेरोजगारों की बढ़ती संख्या से अराजकता और अपराधों में वृद्धि।
*छुपी हुई बेरोजगारी की भरमार (1 कमाने वाला 5 खाने वाले जबकि सभी कमाने लायक उम्र के), जवान लोग ताश खेलने, जुआ खेलने, नशा-पता करने के आदि हो रहे हैं। 
* जातिवाद व धार्मिक कट्टरता मे आजादी के बाद से बढोतरी और अनुसूचित जाति वर्ग पर अत्याचारों में अत्यधिक वृद्धि विशेषतः ऐसे लोगों पर अत्याचार अधिक हुए हैं जो पढ-लिख कर अधिकार की बात करते हैं।
*अनुसूचित जाति वर्ग की बस्तियों में पेय-जल, अशुद्ध जल-निकास प्रणाली और पैदल चलने तक के रास्तों का अभाव।
*अनुसूचित जाति वर्ग के दुकानदार नहीं होने से जातिवादी वर्ग के प्रतिष्ठानों पर पैसे देकर भी भीख की तरह सामान खरीदने की मजबूरी।
* खेतीहर मजदूरों की खरीदे हुए गुलामों की भाँति रहने की मजबूरी।  
और इसके उलट यदि आप शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं तो शहरों में-
*बेहतर शिक्षा, बेहतर सामाजिक समरसता, उच्चस्तरीय सुविधाएँ, 
*वर्ष भर रोजगार की उपलब्धता, सभी को अपनी शिक्षा और कुशलता के अनुसार धन्धे की उपलब्धता साथ ही युवाओं को नए धन्धे सीखने के भी अवसर।
* जाति-पाँति भेदभाव में कमी, घोड़ी पर बारात निकालो, शहर के किसी भी हिस्से में रहो, कोई भी धन्धा अपनाओ।
*बच्चों का बेहतर विकास,  
* ऊपर से छुपी हुई बेरोजगारी से छुटकारा (1 कमाने वाला 5 खाने वाले जबकि सभी कमाने लायक उम्र के),
* बेहतर चिकित्सा की सुविधाओं से अच्छी सेहत, रोजगार से कम छुट्टियाँ तो अधिक मासिक आमदनी।
*बेहतर सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा, युवाओं में स्वावलंबन और आत्मसम्मान का भाव जागृत।
*महिलाओं व बालिकाओं की जागरूकता में वृद्धि से बेहतर परिवार का निर्माण अच्छे रिश्तों की नींव।
*केवल तरक्कीपरस्त लोगों से मुलाकात/व्यवहार होने से केवल विकास की बातों की ही चर्चा। 
*सबसे महत्त्वपूर्ण- दकियानूसी और आडम्बरवादी सोच से छुटकारा, कोई दबाव में मृत्युभोज इत्यादि नहीं।
ये तो कुछ ही कारण हैं शहरों की तरफ रुख करने के। आप अपने अनुभवों से और भी गिना सकते हैं। लेकिन प्रयत्न करें कि स्वयं भी अपना मन, कर्म और वचन से शहरीकरण करें और अपने रिश्तेदारों को भी शहरों की ओर लाने का ईमानदारी से प्रयास करें। गाँव हमारे लिए नरक की भी पराकाष्ठा हैं और शहर हमारे लिए उद्धार का द्वार हैं। यदि यह किसी भी यदि यह कथन आपको कुछ ज्यादा ही चुभ गया हो तो किसी भी अनुसूचित जाति वर्ग के अधिकारी/कर्मचारी से धीरे से पूछना कि वह अब गाँव क्यों नहीं जाता और जाता है तो कई-कई वर्षों में क्यों जाता है?  


-फोटो गुगल से साभार