यह देश फिर से बिलख रहा, यह काल फिर से खिल रहा,
पर मृत्यु के मशाण में, उम्मीद की मशाल ले,
इस युद्ध में बुद्ध सा,
“सफेद कोट” में शुद्ध सा,
खड़ा है तू, अड़ा है तू ।।
माना कि कुछ लोग यहाँ, गिरगिट सा रंग बदलते हैं,
“भगवान” बोलते कहने को, और मन में द्वेष उगलते हैं।
पर हैवानियत की धाक से, इंसानियत कहो डरी है क्या,
चंद सांपो के होने से, चंदन की खुशबू मरी है क्या?
ऐसों को नज़रअंदाज़ कर, मदमस्त हाथी सा सदा ,
चला है तू, हाँ चला है तू ।।
अब विश्व-शक्ति हार रही, भारत माँ तुझे पुकार रही।
पर विष-अणु की ताकत को, तेरी हिम्मत ललकार रही।
बच्चे से बूढ़े तक, हर इक को तुझे बचाना है,
महामारी को मात दे, भारत का भाग्य बनाना है।
विश्वास कर यमराज से, हंस रहे तमराज से,
बड़ा है तू, बड़ा है तू ।।
गली-गली, शहर-शहर, उठे नज़र जिधर उधर,
इस मौत का विनाश कर, चहुँ ओर तू प्रभास कर।
इस पेशे की प्रतिष्ठा को, फिर से आज संवार कर,
विज्ञान सर्वशक्ति से, अज्ञानता पर वार कर,
काल के पहाड़ पर, शेर सा दहाड़ कर,
चढ़ा है तू, चढ़ा है तू।।
जनता और जन-सेवक से, छोटा सा अनुरोध है,
बंदिशों में रह अभी, कुछ होने का प्रमाण दें।
ना कोई जय-जयकार करे, ना नाम हमें "भगवान" दें,
हो सके तो “डॉक्टर” को, “इंसान” सा सम्मान दें।।
-डा.विमल कुमार बैरवा
ग्राम-बगडी,तहसील:निवाई
जिला-टोंक
मो.नः+919571647971