भारत रत्न बाबासाहेब के नाम से विश्वस्तरीय लोकप्रिय, विधिवेत्ता, बहुजन (दलित) राजनीतिक नेता और भारतीय संविधान के शिल्पकार ( The Father of Modern India) डॉक्टर भीम राव रामजी अम्बेडकर (वास्तविक अंबावडेकर, (14 अप्रैल 1891- 6 दिसंबर 1956) का जन्म महु, के एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था। सदियों से चली आ रही भारतीय वर्ण व्यवस्था में शूद्र प्रजाति को पशु से भी बदतर माना जाता था और इसके परिणामस्वरूप बाबा साहेब को भी एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें सारा जीवन नारकीय कष्टों में बिताना पड़ा। बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण कर सारा जीवन शोषितों, नारी उत्थान व् देश सेवा में लगाया। बाबा साहेब का योगदान न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में महानतम है और अधिकतर विकसित देश उनकी विचारधारा को अपनाने में लगे हुए हुए है। आइये उनकी श्रेष्टता, उपलब्धियों व् महत्वपूर्ण योगदानों पर एक नज़र डालते है।
अम्बेडकर: व्यक्तित्व व् उपलब्धियां (विश्व ज्ञान दिवस)
ज्ञान के भंडार बाबा साहेब पहले भारतीय है जिन्होंने अर्थशास्त्र में विदेश से Ph.D. की है, उनके जितनी योग्यताये भारत में अभी तक किसी ने नहीं पायी, उनकी गिनती विश्व के श्रेष्ठतम व्यक्तयों में होती है, उनको चलती फिरती लाइब्रेरी भी कहा जाता था। कोलंबिया विश्वविद्यालय में अपने तीन वर्षों के दौरान, डॉ.अम्बेडकर ने अर्थशास्त्र में उनतीस पाठ्यक्रम, इतिहास में ग्यारह, समाजशास्त्र में छह, दर्शनशास्त्र में पांच, एंथ्रोपोलॉजी में चार, राजनीति में तीन और प्रारंभिक फ्रेंच और जर्मन में एक-एक पाठ्यक्रम लिया। गवर्नर लॉर्ड लिनलिथगो और महात्मा गांधी का मानना था कि बाबासाहेब 500 स्नातकों तथा हजारों विद्वानों से भी अधिक बुद्धिमान हैं| डॉ. अम्बेडकर कुल 64 विषयों में मास्टर व 9 भाषाओँ के जानकार थे ।लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से “डॉक्टर ऑल सायन्स” नामक अनमोल डॉक्टरेट पदवी प्राप्त करनेवाले बाबासाहेब विश्व के पहले और एकमात्र महापुरूष हैं।अतः बाबा साहेब की जयंती पूरे विश्व में विश्व ज्ञान दिवस के रूप में भी मनाई जाती है। बाबासाहेब अम्बेडकर ने भगवान बुद्ध, संत कबीर, महात्मा फुले जैसे महापुरूषों को अपना गुरू माना है। बाबा साहेब ने सरकारी जज बनने का प्रस्ताव ठुकरा कर समाज सेवा के लिए वकालत का प्रोफेशन चुना और मुफ्त या कम फीस में बहुजनो के मुकदमे लड़े और हक़ दिलाया। बाबा साहेब ने कुल 32 किताबे लिखी है जिसमे से 22 प्रकाशित हो चुकी है और लगभग 300 से ज्यादा लेख लिखे है।
अम्बेडकर - आधुनिक भारत राष्ट्र निर्माता
बाबा साहेब का योगदान न केवल भारतीय संविधान को आकार देने में रहा, बल्कि उन्होंने आजाद भारत में सभी वर्गो (खासकर शोषित वर्ग व् महिलाओ) की भागीदारी सुनिश्चित करने की वह राह (समान नागरिक अधिकार के अनुरूप एक व्यक्ति, एक मत और एक मूल्य) भी प्रशस्त की जिसके दम पर आज देश को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में विश्व में सम्मान की निगाह से देखा जाता है। भारतीय तिरंगे में “अशोक चक्र” को जगह देने का श्रेय भी डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को जाता है। डॉ. अम्बेडकर भारतीय संविधान की धारा 370, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता है, के खिलाफ थे, जिसको आज राजनैतिक पार्टियां चुनावो ने मुद्दा बनाती है। 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक की रचना भी बाबासाहेब के विचारों(हिल्टन युवा आयोग) पर आधारित थी । भारत में एक स्वतंत्र चुनाव आयोग, न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका को स्वतंत्र और पृथक ,Employment Exchanges & Finance commission की स्थापना भी डॉक्टर अंबेडकर के विचारों की वजह से हुई थी।अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा था कि अंबेडकर अर्थशास्त्र में उनके पिता हैं। बड़े राज्य (मध्य प्रदेश और बिहार आदि) को विघटन कर सुचारु विकसित करने के विचार भी बाबा साहेब के ही थे। बाबा साहेब आंबेडकर ने अपनी किताब “The Problem of Rupee-Its Origin & its solution” में सुझाव दिया था कि "अगर किसी देश में कालाधन और जाली नोटों को समाप्त करना हो तो हर 10 वर्ष बाद उस देश की करेन्सी का विमुद्रीकरण कर देना चाहिए"। उनका मानना था कि जिस प्रकार एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता, उसी प्रकार ये भी भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता और संविधान में ये स्पष्ट कर दिए कि रानी के पेट से राजा पैदा नहीं होगा बल्कि जनता के द्वारा चुना जायेगा। वास्तविक समाजवाद (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय द्वारा स्वतंत्रता , समता , बंधुता) के सिद्धांत को लागु कर "वसुधैव कुटुम्बकम् " को चरितार्थ किया है। गांधी, नेहरू, लोहिया जी समेत तमाम नेताओं में उस साहस या प्रतिबद्धता की कमी नजर आती है जो जातिगत, लैंगिक और साम्प्रदायिक आधार पर बंटे भारतीय समाज को बदल देने के लिए आवश्यक है। हिन्दू धर्म की वर्चस्वशाली संस्था से टकराने की हिम्मत बाबा साहेब के सिवाय किसी की नहीं हुई। विरोध पक्ष के लोगों ने बाबा साहेब को देश विरोधी तक कह दिया था। बाबा साहेब के बिना आज़ादी अधूरी रह जाती। बाबा साहेब ने अंगेजी हुकूमत की निवेश नीति, कर नीति आदि की अपनी थीसिस में तीखी आलोचना की जिससे अंग्रेजी हुकूमत की विश्पटल पर किरकरी हुई और अंग्रेजों को भारत में अपनी नीतिया बदलनी पड़ी। अंग्रेज भारत के तीन विभाजन करना चाहते थे, पर डॉ. अम्बेडकर ने उनके सपने को कभी पूरा नहीं होने दिया। विलायत उच्च शिक्षा के दौरान बाबा साहेब को अंग्रेजों ने क्रान्तिकारी मान लिया था। बाबा साहेब की वजह से फैक्ट्रियों में कम से कम 12-14 घंटे काम करने का नियम बदल कर सिर्फ 8 घंटे कर दिया गया था।
अम्बेडकर जयंती: जल संसाधन दिवस
डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अनेक विषयों मे अपने वैचारिक चिन्तन प्रस्तुत किये थे। उन्होंने देश को विकास की संकल्पना तथा परियोजनाओं का उपहार दिया है। डॉक्टर बाबासाहेब कहते थे कि जल का वितरण अनिश्चित है। इसके लिये हमें प्रकृति से शिकायत नहीं करनी चाहिए बल्कि जल संरक्षण करना चाहिए। ’’भारत में भी वही तरीका अपनाना चाहिए जो नदियों की समस्या से निपटाने के लिये अमेरिका ने अपनाया है, वह तरीका है पानी का स्थायी भण्डार रखने के लिये कई जगह नदियों पर बाँध बनाना। ऐसे बाँध सिंचाई के साथ अन्य कई लक्ष्य भी साधते हैं। महानदी में बह जाने वाले पूरे पानी का भण्डारण सम्भव है। जलाशयों में एकत्र जल से बिजली उत्पादन, जमीन की सिंचाई भी हो सकती है।उन्होंने बहुउद्देशीय नदी घाटी विकास, जल संसाधन का उपयोग, रेलवे और जलमार्ग, तकनीकी बिजली बोर्ड का निर्माण, केन्द्रीय जलमार्ग, सिंचाई तथा नौचालन आयोग; केन्द्रीय जल आयोग, दामोदर नदी घाटी निगम, महानदी पर हीराकुंड बाँध, सतलुज नदी पर भाखड़ा नांगल बांध का निर्माण और सोन नदी परियोजना यशस्वी करने के लिये योगदान दिया है। इससे कम ही लोग परिचित हैं। अतः भारत में पानी और बिजली के Grid System की स्थापना में भी डॉक्टर अंबेडकर का अहम योगदान माना जाता है।हमें बाबा साहेब अम्बेडकर के जन्मदिन 14 अप्रैल को ‘जल संसाधन दिवस’ के रूप में भी मनाना चाहिए।
अम्बेडकर: शोषितों दलितों, अस्पृश्यों के मसीहा
बाबा साहब ने अपने पूरे जीवन के दौरान, उन्होंने दलितों- पिछड़ों के हितों की लड़ाई लड़ी। इंग्लैंड से उच्च शिक्षा लेकर लौटने के बाद जब बाबा साहब भारत लौटे तो समाज में छुआछुत और जातिवाद चरम पर था। इससे प्रभावित होकर उन्होंने इसके खिलाफ अपनी आवाज तेज कर दी, उन्होंने लोगों को इसके प्रति जागरुक करना शुरु किया और ‘बहिष्कृत भारत’, ‘मूक नायक’, ‘जनता’ नाम के पाक्षिक और साप्ताहिक पत्र निकालने शुरू किये थे। बाबा साहब ने समाज में व्याप्त असमानताओं जैसे दलितों के मंदिर प्रवेश वर्जित , छुआछूत, जात-पात आदि कुरीतियों को मिटाने के लिए कई आंदोलन छेड़े, इन आंदोलनों में मनुस्मृति दहन, महाड सत्याग्रह, नासिक सत्याग्रह, येवला की गर्जना कुछ महत्वपूर्ण नाम हैं, पीने के पानी के लिए सत्याग्रह करनेवाले बाबासाहेब विश्व के प्रथम और एकमात्र सत्याग्रही थे।
उन्होंने कमजोर वर्गों के छात्रों की शिक्षा के लिए महाविद्यालयों (सिद्वार्थ महाविद्यालय, मिलिन्द महाविद्यालय) छात्रावासों, रात्रि स्कूलों आदि का इंतजाम किया। बाबा साहब का जोर था कि दलित वर्ग शिक्षा के जरिये आय अर्जित करने में सक्षम बने। दलितों के लिए अल्पसंख्यक का दर्जा और उन्हें पृथक निर्वाचन का अधिकार (पूना पेक्ट) लेने में अगर बाबासाहेब को कामयाब होने देते तो भारतीय राजनीति और समाज की शक्ल सूरत आज कुछ और होती। वंचितों को उनका वास्तविक प्रतिनिधित्व मिलता जो किसी भी लोकतंत्र की कसौटी होता है। इसमें यूँ कह सकते है कि बाबा साहेब के द्वारा गाँधी जी को दुबारा जीवन दान दिया गया था।बाबासाहेब अंबेडकर जिस ताकत के साथ दलितों को उनका हक दिलाने के लिए उन्हें एकजुट करने और राजनीतिक-सामाजिक रूप से उन्हें सशक्त बनाने में जुटे थे, उतनी ही ताकत के साथ उनके विरोधी भी उन्हें रोकने के लिए जोर लगा रहे थे।
अम्बेडकर: नारी उत्थान का स्तम्भ(हिंदू कोड बिल)
"ढोल गवाँर सूद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी"…।
पुरुष प्रधान समाज में नारी की स्तिथि वस्तु मात्र रह गयी थी, घर की चार दीवारों तक सीमित कर उसके ऊपर बहुत सारी कुरूतियों (बाल विवाह, सती प्रथा, शिक्षा से दूर रखना, संपत्ति का अधिकार, असमान मज़दूरी, पुरुष प्रधानता , लिंग भेद आदि ) में लाद दिया गया था जो आज भी कुछ हद तक प्रचलन में है।
बाबासाहेब महिलाओं की उन्नति के प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि किसी भी समाज का मूल्यांकन इस बात से किया जाता है कि उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है? दुनिया की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, इसलिए जब तक उनका समुचित विकास नहीं होता, कोई भी देश चहुंमुखी विकास नहीं कर सकता। वो बाबासाहेब ही थे जिन्होंने महिला श्रमिकों के लिए सहायक Maternity Benefit for women Labour, Women Labour welfare fund, Women and Child Labour Protection Act जैसे कानून बनाए। महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया। हिन्दू कोड बिल के तहत हिन्दू महिलाओं को आज़ाद कराना स्त्री आज़ादी के साथ-साथ जाति उन्मूलन की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुआ।
अम्बेडकर: आधुनिक बुद्ध
लंबे संघर्ष के बाद भी हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरूतियों से आहात होकर डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का अपने लगभग दस लाख समर्थको के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना विश्व में ऐतिहासिक बन गया था। बाबासाहेब को बौद्ध धर्म की दीक्षा देनेवाले महान बौद्ध भिक्षु "महंत वीर चंद्रमणी" ने उन्हें “इस युग का आधुनिक बुद्ध” कहा व बौद्ध धर्म की सर्वोच्च उपाधि “बोधीसत्त्व” प्रदान की थी । उनकी प्रसिद्ध किताब “दि बुद्ध अण्ड हिज् धम्म” भारतीय बौद्धों का “धर्मग्रंथ” है। विश्व में हर जगह बुद्ध की बंद आंखो वाली प्रतिमाएं एवं पेंटिग्स दिखाई देती है लेकिन बाबासाहेब जो उत्तम चित्रकार भी थे, उन्होंने सर्वप्रथम बुद्ध की ऐसी पेंटिंग बनाई थी जिसमें बुद्ध की आंखे खूली थी।
बाबा साहेब का - अंतिम सन्देश (भीम नीति)
बाबा साहेब आंबेडकर जी ने अपने एक ऐतिहासिक भाषण में कहा था कि -"देश के हित को अपने निजी स्वार्थ से ऊँचा रखना चाहिए " l “हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं"l परमपूज्य बाबा साहेब ने अपने समाज के युवाओं को सन्देश देते हुए कहा कि एक तो वे शिक्षा और बुद्धि में किसी से कम न रहे, दूसरे ऐशो-आराम में न पड़कर समाज का नेतृत्व करे, तीसरे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी संभाले तथा समाज को जागृत और संगठित कर उसकी सेवा करे l उनका मंत्र शिक्षित बनो ,संगठित रहो और संघर्ष करो , अपने अधिकार पाने का एक सबसे बड़ा हथियार हैl
युगपुरुष बाबा साहेब का अपने अनुयायियों को अंतिम सन्देश "आज यह कारवां जहाँ है, इसे मैं यहाँ तक बड़ी मुसीबतों, अत्यंत दुखों, बेशुमार विरोधों का मुकाबला करके लाया हूँ ! तुम्हारा कर्तव्य है कि यह कारवां सदा आगे ही बढ़ाते रहना, बेशक कितनी भी मुसीबतें आये ! परन्तु यदि इसे आगे न बढ़ा सकों तो, किसी भी दशा में पीछे न जाने दें, जहाँ है, वही छोड़ दे !" देश हित में ये सन्देश देकर महान आत्मा, करोडो दिलों में राज करने वाले विश्व विख्यात ज्ञान के सागर बाबा साहेब 6 दिसम्बर 1956 को महापरिनिर्वाण नींद में सो गए l
बाबा साहेब अम्बेडकर के: सपने व आज का सच
डॉ.अम्बेडकर ने धर्म के आधार पर राष्ट्र के गठन का हमेशा विरोध किया और संविधान में ऐसे मूल्यों और प्रावधानों को शामिल करने के लिए लड़ते रहे जो समाज के पूर्ण लोकतंत्रीकरण की जमीन तैयार करता है । लेकिन आज कुछ राजनैतिक नेता संविधान को बदल कर धर्म विशेष राष्ट्र बनाने की वकालत कर रहे है। बाबा साहेब के सपने " जातिविहीन भारत" से हम आज भी कोसो दूर है। महिला मतदाताओं की बढ़ती संख्या के बावजूद राज्य विधानसभाओं व संसद में महिलावों की स्तिथि इतनी अच्छी नहीं है ।विश्व के कई देश आंबेडकर को अपनाकर,उनके विचारों को खुद के संविधान में जोड़कर, उनके नाम से राजमार्ग , विश्व विद्यालय पर मूर्ति स्थापित कर अपने आप को गौरन्वित महसूस कर रहे है लेकिन अफ़सोस जहाँ ये कोहिनूर जन्मा और अपना सर्वोच्य देश के लिए कुर्बान किया उसी भारत में उनके विचार धारा को केवल किताबों व एक वर्ग विशेष तक ही सीमित कर दिया और इस बात से परहेज नहीं होगा कि आज भी कुछ अराजको द्वारा उनकी मूर्ति तोडना, उनके नाम की टी-शर्ट पहनने पर मारपीट करना, उनके नाम को गलत साबित करना, सामाजिक असमानता, राजनैतिक व पूंजीवादी बोलबाला, संविधान की प्रतिलिपि जलाना आदि आज़ादी के 70 साल भी देखी जा रही है। इसमें सरकारों की विफलता झलकती है , ये चिंता की बात है। अंबेडकर के बाद जिस तरह से एक-एक नेता पनपना चाहिए था वो नहीं हुआ, अंदरूनी कलह, जलन, निजी स्वार्थ, भौतिकवाद और राजनीतिक घातों के चलते वे बिखरते चले गए l कुल मिलाकर वर्तमान में नेताओं द्वारा बाबासाहेब का चित्र और प्रतिमाएं लेकर दलित समाज को भावुक कर अपने वोटबैंक की राजनीति को साधने का प्रयास जाऱी है l
वो सोचते थे कि उनकी बहुजन समाज पढ़ लिख कर डॉक्टर इंजीनियर बने और समाजोत्थान का कार्य करे लेकिन बाद में ये भी देखा गया कि उन्हें पढ़े लिखे लोगो ने ज्यादा धोखा दिया, वो अपने निजी स्वार्थ पूरा करने में लग गए और बाबा साहेब के कारवां को आगे ले जाने के बजाय, स्थिर या पीछे ढखेलते नज़र आते है, जाति विशेष आधारित संगठन बनाने में विश्वास रखते है, और अपने ही जाति विशेष में स्थिर रहकर अभी भी मनुवाद की चादर ओढे हुए है और अपने ही समाज पर राज करने के लिए लालायित हैl
चूँकि मैं आशावादी हूँ और बाबा साहेब भी कहते थे कि "गुलाम को जब तक गुलामी का एहसास नहीं होता तब तक वो संघर्ष नहीं करता " तो मेरा मानना है कि धीरे धीरे बहुजन समाज चेतेगा और अपनी शक्ति को पहचान कर बाबा साहेब के कारवां को आगे बढ़ाएगा l
अंत में, विश्व की महान विचारधारा को शत शत नमन करते हुए मैं यही कहना चाहता हूँ कि अंबेडकर कोई व्यक्ति विशेष नहीं, कोई जाति या धर्म सम्प्रयदाय भी नहीं बल्कि विश्व में ज्ञान की एक ऐसी महान विचारधारा है जो स्वातंत्र्य, समानता, भाईचारा, विज्ञानवाद, मानवतावाद, सत्य, अहिंसा से ओतप्रोत है, बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का कृतित्व और विचार एक आईने की तरह है जिसमें भारतीय राष्ट्र और लोकतंत्र का चेहरा साफ-साफ दिखता है। बाबा के व्यक्तित्व, उपलब्धियों, योगदान व उनके विचारों को एक लेख में समाना “ऊँट का सुई की नोंक से निकलने” के बराबर जैसा है, मेरा मानना है कि अम्बेडकर को एक लेख नहीं, किसी एक किताब में भी नहीं बल्कि हर यूनिवर्सिटी में उनकी विचारधारा के लिए एक विभाग होना चाहिए और उनके विचारों को भारत में लागु कर के ही हम विश्व गुरु की ओर अग्रसर हो सकते है l
…शत शत नमन
ये लेखक के निजी विचार है।
लक्ष्मी नारायण जाबडोलिया
(M. Tech., MBA, LLM, NET-JRF, ACBM, FSMS-LA, DNV, NORWAY)