आरक्षण विरोध का नाम : दोगलेपन का काम


हे वर्णवाद के पोषक !
तुम कहते हो कि “आरक्षण आत्मा का विषय है...! सृष्टि में जितने पशु पक्षी कीट दिखाई पड़ते हैं, वे कभी मनुष्य ही थे।”


हे कुत्सित क़लम के धनी ! आरक्षण आत्मा का विषय नहीं है बल्कि आरक्षण मानव समाज का विषय है। मानव समाज में जहाँ भी लोगों को अवसर नहीं मिलने क  कारण वे विभिन्न क्षेत्रों में पिछड़े रह गए, उन लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था का नाम है आरक्षण। 
तुम जिसको आत्मा कहते हो वह कहीं दिखती है क्या ..? और जिनकी आत्मा ज़िंदा हैं क्या उन्हें जाति के आधार पर अन्याय अत्याचार असमानता और अमानवीय व्यवहार पर कभी ख़ुद को धिक्कारती है या नहीं...?? 
तुम कहते हो कि सारे प्राणी कभी मनुष्य ही थे..! ये कहाँ की अक़ल है जनाब ! पहले मनुष्यों की इतनी आबादी ही नहीं थी जितनी कि पशु पक्षी कीट हैं। तो फिर बताओ ये सारे प्राणी कैसे मनुष्य हुए ? बुद्धिमत्ता इसमें है कि जो कुछ भी सुना जाए या पढ़ा जाए उस पर हम तार्किक की दृष्टि से विचार करें, मान लेने का काम सिर्फ़ मूर्खों का होता है। 
आरक्षण के ज़रिये वंचित शोषित तबकों को शासन प्रशासन में प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई थी। क्या तुमने वर्णव्यवस्था इस देश के अलावा कहीं अन्यत्र देखी है ? तुम जिस वर्ण व्यवस्था के हिमायती हो उसी वर्णव्यवस्था ने इस देश में जाति व्यवस्था को जन्म दिया। वर्णों की व्यवस्था में जन्मजात व्यक्ति को ऊँचा और नीचा माना जाता है। क्या तुम इसके हिमायती हो कि कोई भी व्यक्ति जन्म से श्रेष्ठ हो सकता है ? अगर ऐसा है तो सारी दुनिया तुम्हारे इस कुतर्क को क्यों नहीं मानती ? तुम आरक्षण के हटाने की बात करते हो क्या तुमने कभी जाति व्यवस्था हटाने की बात कही है ? जाति के आधार पर इस देश में हज़ारों सालों से समाज के पिचासी प्रतिशत तबके के साथ सामाजिक भेदभाव छुआछूत असमानताअत्याचार अन्याय होता रहा है। तुम्हारी नज़र में वो जायज़ हो सकता है लेकिन किसी भी मानवता के पक्षधर सभ्य समाज/व्यक्ति ऐसी कुव्यवस्था का हिमायती नहीं हो सकता। लेकिन तुमने वह ज़लालत तिरस्कार वह अपमान थोड़े ही सहा है। जिन्होंने जाति व्यवस्था का दंश अपने मन पर झेला है, इस अमानवीय अपमानकारी जाति व्यवस्था का दर्द वही महसूस कर सकता है। इसी जाति व्यवस्था के कारण आज भी देश में करोड़ों इंसानों के साथ अमानवीय व्यवहार अत्याचार हो रहा है और वह तुम्हारे जैसे वर्णवादियों की कुत्सित मानसिकता का ही परिणाम है। 
हे जातिवाद के हिमायती !
तुम्हें अगर संविधान की समझ होती या तुम्हारी नीयत सही होती तो तुम ये अवश्य समझ लेते हैं कि आरक्षण रोज़गार देने का उपाय नहीं है बल्कि सामाजिक न्याय से वंचित शोषित एवं पिछड़े हुए लोगों को इस देश की व्यवस्था में प्रतिनिधित्व देने का एक संवैधानिक प्रावधान  है। यह ग़रीबी उन्मूलन योजना नहीं है। संविधान में जिस सामाजिक न्याय की बात की गई है यह उसी का हिस्सा है। लेकिन तुम जैसे वर्णवादी न्याय को क्या समझोगे क्योंकि वर्णवादी विचारधारा तो स्वयं अन्याय का ही पर्यायवाची है। 
तुम जिस प्रतिभा की बात करते हो वह प्रतिभा जन्म से नहीं अवसरों से मिलती है। समाज के बड़े हिस्से को हज़ारों सालों से शिक्षा से वंचित रखा गया, शिक्षा के द्वार उनके लिए बंद रहे। तुम उनसे ये अपेक्षा करते हो कि वे अल्पकाल  में ही दूसरों के बराबर आ जाएँगे। अरे, अभी तो देश को आज़ाद हुए हैं सिर्फ़ से बहतर साल हुए हैं। हज़ारों सालों की व्यवस्था में शोषित वंचित और पिछड़े वर्ग के लोग केवल 7 दशक में सवर्णों के बराबर कैसे आ सकते हैं ? यदि तुम्हारे शरीर का एक हाथ सामान्य हो और दूसरा हाथ से पहले हाथ की तुलना में कमज़ोर हो तो क्या तुम दूसरे हाथ की विशेष देखभाल करके उसे पहले हाथ के समान बनाने की कोशिश नहीं करोगे ? तुम शायद ऐसा भले ही नहीं करो लेकिन एक सामान्य समझ का व्यक्ति तो ऐसा अवश्य करेगा कि कमज़ोर हाथ की भी देखभाल करके उसे दूसरे हाथ के समान मज़बूत बनाया जाए। ठीक इसी तरह से समाज का एक तबक़े को सदियों से कमज़ोर बनाए रखा गया, उसे वंचित रखा गया तो क्या उसको दूसरे के बराबर लाने के लिए कोई उपाय नहीं किए जाएंगे ? अगर तुम यह मानते हो कि जैसा है वैसा ही रहने दिया जाए तो तुम सिर्फ़ भाग्यवादी हो, तुम केवल मिथकीय विचारधारा के पोषक हो जिसमें यह मान लिया जाता है कि यह सब कर्मों का फल है। अगर ऐसा कर्मों का फल है और पूर्वजन्म के कर्मों के कारण यदि मनुष्य का अलग अलग वर्णों में जन्म होता है तो तुम यह तो बताओ कि अमेरिका ऑस्ट्रेलिया चीन जर्मनी जापान फ़्रान्स इंग्लैंड ब्राज़ील आदि देशों में तुम्हारे ये वर्ण क्यों नहीं लागू होते हैं ? तुम सवर्णों की बात करते हो समाज के शोषण करने की यह पाखंडी व्यवस्था दुनिया के और हिस्सों में क्यों नहीं हैं ? वंचित शोषित तबकों को शासन प्रशासन में भागीदारी देने के लिए दुनिया के कई देशों में सकारात्मक उपायों के तहत आरक्षण की व्यवस्था लागू है जिसके कारण ही वहाँ पर वंचित वर्ग को मानवीय गरिमा प्राप्त हो रही है। 


तुम कदाचित भूल गए हो कि इसी वर्ण व्यवस्था के कारण समाज में जो भेदभाव रहा वंचित शोषित तबकों के साथ जो अन्याय हुआ। इसी वर्ण व्यवस्था के कारण ही वंचित शोषित तबके को तो कभी हथियार उठाने का अवसर नहीं दिया गया और न ही वे कभी हथियार उठा ही पाए। तत्कालीन अत्याचारी शासन से वे हमेशा कटे हुए रहे और जब इस देश में विदेशी आक्रांता आए तो वर्णवादी व्यवस्था के पोषक शासक हार गए और इस वर्ण व्यवस्था के कारण ही यह देश ग़ुलाम हुआ। तुम जिस वर्णव्यवस्था की बात करते हो उसमें व्याप्त पाखण्ड पूजा पद्धति तंत्र मंत्र कभी विदेशी आक्रान्ताओं से पाखंडी ख़ुद को नहीं बचा पाए और न ही इस देश को बचा पाए। 
यदि इस देश में 85 प्रतिशत आबादी को भी मानवीय गरिमा के साथ जीने का अवसर मिलता तो निश्चय ही वे शासन के साथ मिलकर विदेशी आक्रान्ताओं से भी लोहा लेते मगर अफ़सोस तुम्हारी वर्ण व्यवस्था ने इस देश को ग़ुलाम बनाने पर मजबूर कर दिया। आरक्षण ने हीन भावना नहीं भरी है बल्कि वंचित शोषित तबकों में गर्व की भावना भरी है। हीन भावना तो पहले से ही तुम्हारे जैसे वर्णवादियों के दिल में भरी हुई है। जातिवाद के जो जनक हैं, जो जातिवादी पर गर्व करते हैं उन लोगों के सीने पर साँप इसलिए लौट रहे हैं क्योंकि वंचित शोषित और पिछड़े वर्ग के लोग लोगों का शासन प्रशासन में थोड़ा बहुत प्रतिनिधित्व होने लगा है और वे क़लम किताब उठाकर पढ़ना लिखना सीख गए हैं। जब से उन्होंने शिक्षा हासिल करना शुरू किया है। वर्णवादियों की चालें, शोषण के षड्यंत्र समझ में आने लगे हैं। आज भी वंचित वर्गों से यदि कोई व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में, चाहे वह राजनैतिक हो प्रशासन का हो या अन्य किसी पेशे का हो, उसमें आरक्षित वर्ग का कोई भी व्यक्ति अन्य वर्णवादियों की तुलना में यदि श्रेष्ठ होता है तो भी उसके साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार होता है क्योंकि जातिवादी मानसिकता में यह कचरा हमेशा भरा रहता है की वे जन्म से श्रेष्ठ है और आरक्षित वर्ग का व्यक्ति निम्न है। यह हीन भावना तुम्हारी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था की देन है। 
तुम शायद भूल गए हो कि सामाजिक अन्याय अत्याचार और प्रताड़ना से पीड़ित होकर ही इस देश के मूल निवासियों ने वर्णवादी व्यवस्था को तिलांजलि देकर ही वे अन्य धर्मों की ओर आकर्षित हुए हैं। इस देश की वर्ण वादी और जातिवादी व्यवस्था यदि इतनी ही श्रेष्ठ होती तो इस दुनिया के अन्य देशों में भी वह व्याप्त होती। तुम शायद भूल गए हो कि समानता मानवता और नैतिकता से युक्त इसी भारत देश में उत्पन्न हुआ बौद्ध धर्म को दुनिया के कई देशों ने अपनाया हैं मगर वर्णवादी व्यवस्था से उत्पादन तुम्हारा धर्म केवल एक भूभाग तक सीमित होकर रह गया है और उसमें भी प्रतिदिन गिरावट आ ही रही है। 


और हाँ, जिस न्यायालय से तुम पुनर्विचार की माँग कर रहे हो, हम यह अच्छी तरह समझते हैं कि वहाँ बैठे लोगों में न्याय करने की कोई मानसिकता नहीं है क्योंकि वे स्वयं वर्णवादी और जातिवादी व्यवस्था के हिमायती हैं। यदि उन्हें न्याय करने की नीयत होती तो अंग्रेज़ उनके न्यायाधीश बनने पर रोक नहीं लगाते। 


इस देश के मुट्ठीभर वर्णवादी लोगों ने देश की सत्ता और संसाधनों पर क़ब्ज़ा जमाया हुआ है और वे वंचित शोषित और पिछड़े वर्ग के लोगों के हितों पर डाका डाल रहे हैं। देश की 85% आबादी आज भी देश के शासन और संसाधनों में अपने वाजिब हिस्से को तरस रही है। यदि वर्णवादी व्यवस्था, वंचित शोषित और पिछड़े वर्ग की भावना और माँग को नहीं समझेगी तो इस देश में फिर से सामाजिक क्रांति होगी। अपने कुत्सित इरादों से जिस तरह से तुम इस देश में आग लगाना चाहते हो तो ये समझ लीजिए के इस आग में तुम्हारी जैसे कुत्सित मानसिकता के लोग जल करके भस्म हो जाएंगे


 


-पं.बी.आर.भारतीय


प्रतिकात्मक चित्र समय बुद्धा से साभार