आज अम्बेडकर के भक्त ज्यादा है,अनुयायी कम...








बहुत कडवा सच है लेकिन वास्तविकता को नकार नहीं सकते।दरअसल हमने अम्बेडकर को अपने-अपने हिसाब से गढ लिया है,अपने-अपने सांचें में ढाल दिया है।जिसमें हमारा स्वार्थ सधता है उसी अम्बेडकर को याद करते है।बाबा साहेब अम्बेडकर ने अकेले ही सामाजिक, शैक्षिक, बौद्धिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनीति क्षेत्र में बेहतरीन संस्थाओं का निर्माण कर गौरवशाली स्थान तक पहुंचा कर,देश के लिए महान योगदान कर दुनिया से विदा हुए।रात दिन दूसरों को कोसने वाले अम्बेडकर की पूजा कर माला जपने वाले उनके भक्तों ने अम्बेडकर की धरोहर की जो दुर्दशा कर रखी है उस पर सिर्फ आंसू ही बहाए जा सकते है।
 

उन्होंने शिक्षा,संगठन व संघर्ष का महान सूत्र दिया लेकिन हम खुद ही शिक्षित होकर ऊंचे पदों पर पहुंच कर धन जोडकर समाज की चिंता भूल गये।खुद दलितों में एक ब्राह्मणवाद ने अवतार ले लिया।

 

अम्बेडकर ने संसद की ओर इशारा क्या किया,आज हर कोई एम.एल.ए ,एम.पी बनने की जुगाड में लगा हुआ है और जो वहां पहुंच जाता है वह समाज के लिए कभी मुहं नहीं खोलता है वह अम्बेडकर विचारधारा को कुएं में फेंक अपने आका व पार्टी की चिलम भरने में ही खुद को धन्य मानता है।अम्बेडकर के नाम पर तथा उनके सपनों को साकार करने का दावा करने वाली दलितों की दसों राजनीतिक पार्टियां व बडे संगठन है लेकिन इनके लीडर साथ बैठना तो दूर एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते है। दूसरों को जोडने चले थे खुद ही बुरी तरह बिखर गये है।

 

बाबा साहेब ने जोर दिया था कि बहुजन समाज वैचारिक व सांस्कृतिक रूप से एक हो जाए,संगठित होएं। घर-घर बुद्ध- कबीर का साहित्य फैलाए।लेकिन पालना में हमने उनके बनाए संगठनों को कूडे में फैंककर घर-घर नई संस्थाएं बना डाली।जिसके पदों के लिए सड़क पर आए दिन चुनाव,हाथापाई से लेकर कोर्ट कचहरी में लडते रहते है।या स्वयंभू अध्यक्ष बन कर संस्थाओं पर सांप की तरह कुंडली मारे बैठे रहते है और अपने वर्चस्व को हल्की सी चुनौती देने पर फुंफकारते है।बाबासाहेब ने आर्थिक मुश्किलों के बावजूद उच्च स्तरीय शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की,पत्र पत्रिकाएं निकाली,रात दिन एक कर हर क्षेत्र के सैकडों ग्रंथों की रचना की लेकिन घर घर बनी संस्थाओं ने इस मुहिम को इगे बढाने की बजाय खुद की संस्था की शाखाएं खोलना व फिजूलखर्ची ज्यादा की और तो और शिक्षा से जुडे शिक्षाविदों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।

 

बाबा साहेब ने हर धर्म का लंबे समय तक गहराई से अध्ययन कर वैज्ञानिक व मानवतावादी बुद्ध और धम्म मार्ग बताया लेकिन हमारे कथित पढे लिखें लोग भी उनके इस फैसले पर सवाल खडे करते है और आज भी अन्धविश्वास में आकंठ डूबे हुए है।जो बुद्ध के नाम पर थोडा आगे बढे है उनमें से अधिकतर ने सिर्फ सरनेम बौद्ध लगातार इतिश्री मान ली और बौद्ध धर्म के नाम पर नए कर्मकांडों को अपना लिया। न धम्म के शीलों का पालन करते है और न धम्म प्रचार। बस बौद्ध धर्म के भक्त बन गए।इस खाज में कोढ का काम किया भिक्षुकों ने। अधिकतर भिक्षु अध्ययन, भ्रमण,देशना,ध्यान व धम्मन प्रचार की बजाय ब्याह शादी कराने,परिवार का पेट भराई, दक्षिणा व बुद्ध विहारों को डेरा जमाने में ही ध्यान लगाते है।जिन लोगों को 1956 में ही बाबा साहेब ने धम्म दे दिया था उन्होंने भी इसे फैलाने में कोई रूचि नहीं ली।इसे मराठी और महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाने दिया। उल्टा उन्होंने बाबा साहेब के सारे संगठनों के टुकडे-टुकडे कर सत्यनाश कर दिया।उनकी अनमोल बौद्धिक धरोहर को जन जन तक फैलाना तो दूर खुद ही भटक गए और दूसरों को इतना कोसा कि बुद्ध व अम्बेडकर के घृणा के पात्र बन गए।

 

आज युवा पीढी एक चौराहे पर है। अम्बेडकर के नाम पर पुराने नेताओं से मोहभंग होता है तो बार बार नए लीडर उभर कर आते है लेकिन अम्बेडकर को पढने,जीवन में उतारने व वैचारिक बौद्धिक परिपक्वता की बजाय गुस्सा,टकराव, गाली गलौच,बात बात पर धरना प्रर्दशन, भारतबंद,प्रदेश बंद से बहुजनों की बुनियादी जरूरतों के गंभीर मुद्दें भी कानूनी कारवाईयोंं की भेंट चढ जाते है।अम्बेडकर के नाम पर युवाओं ने कई संगठन बना रखें है। गले में नीला गमछा डाल,जय भीम का जयकारा कर युवा सडक़ों पर उमडता है लेकिन शिक्षा रोजगार व धन की कमी के कारण जल्दी ही टूट जाता है,चितंन,विचार व दिशा नहीं है। अम्बेडकर के भक्त ज्यादा है अनुयायी कम।

आरक्षण के लाभ से धनवान बनी पहली रिटायर्ड पीढी पर समाज को संभालने की जिम्मेदारी थी लेकिन वह ऐशोआराम, शराब,टीवी,तीर्थ,यात्रा,राजनीति या ताश के पत्तों में ही मदहोश है।भूल से बात अम्बेडकर की करते है लेकिन घर परिवार में सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास व धार्मिक कर्मकांड ज्यों के त्यों है।नौकरी के दौरान वंचित वर्ग की पैरवी करने के बजाय उसे प्रताडित करने में कोई कसर नहीं छोडी। मदद के लिए सरकारी नियमों का रोना रोया और अब न शरीर साथ दे रहा है न मन।अब जिन्दगी घर के कमरें में उपेक्षित व गुमनाम असहाय हो गई है।बाबा साहेब का कारवां कहता है विरोधियों का मुकाबला कर असहनीय कष्टों को सहन कर इस कारवां को यहां तक लाया हूं,हो सके तो इसे आगे बढाना लेकिन किसी भी दशा में पीछे मत जाने देना,यहीं मेरा आखिरी संदेश है।भला दूसरों को क्या दोष दें।आज अम्बेडकर खुद लौटकर आ जाए तो उन्हें अपने ही भक्तों से ही लडना पडेगा।

 

 


  • -डा.एम.एल.परिहार