बुद्ध ने बड़ी क्रांतिकारी दृष्टि दी. आत्मा परमात्मा ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया.....

बुद्ध ने बड़ी क्रांतिकारी दृष्टि दी. आत्मा परमात्मा ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया....
 ईश्वर का मतलब हो जाता है कोई आकाश में बैठा है, सारे जगत को चला रहा है.चलो इसकी खुशामद करें, स्तुति करें. किसी भी तरह इसको प्रसन्न करें ताकि इसकी दया हो जाएगी. इसकी अनुकंपा से हम धन, दौलत व प्रतिष्ठा में दूसरों से आगे निकल जाएंगे. 
ईश्वर को राजी कर हम अपनी मन्नतें मंगवा लेंगे. चलो इसके पैर दबाए. चलो इससे कहे कि हम तो तुम्हारे चरणों की धूल है, हमारे पापों अवगुणों पर ध्यान मत दो और सबकुछ दे दो.
        यदि ईश्वर आकाश में बैठा है मनुष्य की तरह, तो स्वाभाविक रूप से उसमें मनुष्य की तरह कमजोरियां भी होगी. मनुष्य को रिश्वत और चापलूसी से राजी किया जा सकता है, तो ईश्वर को भी इसी तरह राजी किया जा सकता है. यदि अपने स्वार्थ के लिए गैरकानूनी व अमानवीय मांगे आदमी से पूरी करवाई जा सकती हैं तो फिर ईश्वर से भी पूरी करवाई जा सकती हैं.
        ईश्वर की अवधारणा के कारण आदमी के भीतर बेहुदी इच्छाएं वह आकांक्षाएं जन्म लेती हैं इसलिए बुद्ध ने ईश्वर की जगह नियम व सिद्धांत को स्थापित किया. नियम को भला कोई प्रार्थना पूजा कर थोड़े ही राजी किया जा सकता है. गुरुत्वाकर्षण नियम को पूजा कर खुश नहीं कर सकते. यू नहीं कह सकते कि हे ! गुरुत्वाकर्षण मुझे रास्ते पर गिरा मत देना, टांग मत तोड़ देना. प्रकृति के ऐसे नियमों के आगे कोई स्तुति, प्रार्थना या पूजा करेगा तो नासमझ ही कहलाएगा. 
       बिजली के साथ बादल आकाश में गरजे और हमने कल्पना कर ली कि इंद्र देवता नाराज हो रहा है इंद्र देवता हमसे कुछ भूल हो गई. अकाल, रोग प्रकोप व अन्य विपदा को हमने कर्मो का फल समझ लिया. देवता का दंड मान लिया. शुद्र जन्म को पूर्व जन्मों का फल मान लिया. इसलिए जब ईश्वर को मानोगे तो इतनी झंझटें तो आएगी. 
बुद्ध ने ईश्वर की अवधारणा को ही पोंछ डाला. आत्मा परमात्मा के रूप को ही मिटा दिया. न कोई आत्मा है न परमात्मा. ईश्वर नहीं, तो फिर क्या है ? फिर एक महानियम है. जीवन एक शाश्वत नियम है. प्रकृति के नियमों से संसार चल रहा है और नियम की प्रार्थना या खुशामद नहीं की जा सकती, रिश्वत नहीं दी जा सकती. नियम का तो बस पालन ही किया जा सकता है. पालन करेंगे तो सुख पाओगे.
       ऐसा नहीं है कि नियम आकाश में या यहां वहां डंडा लिए बैठा है. यदि पालन नहीं करोगे तो सिर फोड़ देगा. वहां कोई नहीं बैठा है. दरअसल हम प्रकृति के नियम के खिलाफ जाकर स्वयं को दंड देते है. हम ही अपने को दंड देते हैं और पुरस्कार भी.बुद्ध ने मनुष्य को सारी शक्ति दे दी, सार्वभौम शक्ति दे दी और कहा.. कोई ईश्वर नहीं है. प्रकृति के नियम है जो सनातन है यानी सदियों से चले आ रहे हैं. यही धम्म है.एस धम्मो सनंतनो.
भवतु सब मंगल......सबका कल्याण हो