सूअर पालो, सेठ बन जाओगे. पैसा ही पैसा है....


याद रखो सेठ का बेटा सेठ कहलाता है लेकिन कलेक्टर का बेटा कलेक्टर नहीं कहलाता है. इसलिए बिजनेस द्वारा सेठ बनो, नौकर नहीं. 
       दरअसल जिस तरह के सूअर पालन कि मैं बात कर रहा हूं वह इस परंपरागत रूढीगत देसी सूअर पालन से काफी अलग है.यार्कशायर नामक विदेशी नस्ल के सूअर दिखने में भारी भरकम भूरे गुलाबी रंग के होते हैं जो जल्दी जल्दी खूब सारे बच्चे पैदा करते हैं. शरीर का वजन बहुत तेज गति से बढ़ता है. कस्बा या शहर की सब्जी मंडी होटल, रेस्टोरेंट का बचा हुआ भोजन, सब्जियां फल आदि को इनके भोजन के रूप में काम में लिया जा सकता है .इनके रखरखाव में ज्यादा खर्च नहीं होता है लेकिन वैज्ञानिक ढंग से पालना बहुत जरूरी है. इस बिजनेस में कम पूंजी लगाकर कम समय में काफी पैसा कमाया जा सकता है.
           रहा सवाल मार्केट का तो आजकल सूअर का मांस (पोर्क) की हर शहर में काफी मांग रहती है.होटलों में विदेशी टूरिस्ट के लिए काफी जरूरत होती है. आर्मी में भी खपत होती हैं. इसका मांस स्वास्थ्य के लिए काफी पौष्टिक होता है इसलिए समाज के कई समुदाय के लोग बेहिचक खाते हैं  मांस की विदेशों में बहुत खपत होती हैं भारत में भी कई राज्यों में सूअर पालन बड़े पैमाने पर किया जाता है. 
दलित मेहतर समुदाय आज भी अपनी कॉलोनियों में पुराने ढंग से देसी सूअर पालन कर विकास की राह में पीछे छूट रहा है जबकि शहरों में सवर्ण जातियों के लोगों ने बेहिचक इसे अपनाकर आर्थिक समृद्धि की राह पकड़ ली है. पंजाब के मेहनतकश व्यापारियो ने इस बिजनेस को खूब आगे बढ़ाया. उन्होंने झूठे लोक लाज की परवाह नहीं की ,अपने जाति धर्म के झूठे मापदंडों पर ध्यान नहीं दिया और विदेशी ब्रीड के सूअर पालन को वैज्ञानिक व साफ सुथरे ढंग से कर खूब नाम व पैसा कमाया.
         मेहतर समाज ने अपने घरों मोहल्लों में देसी सूअर को ऐसे ढंग से पाला की सुअर पालना तो दूर सूअर के नाम से ही दूसरों को घिन्न हो जाती हैं. तंग गलियों की बस्तियों में देसी सूअर पालना, उनके घरों के आसपास सारे दिन ऐसे सूअर घूमना, वही दर्दनाक तरीके से पकड़कर उनके बाल नोचना , बस्ती में चारों ओर सूअरों का फैला हुआ मैला और उसी परिवेश में खेलते बच्चे और ताश खेलते बेरोजगार. 
कमोवेश पूरे देश की ऐसी बस्तियों में सूअर पालन का यही तरीका और तस्वीर नजर आती हैं ऐसे में भला शिक्षा व समृद्धि की रोशनी हमारे इन दलित भाईयों के घरों में कैसे पहुंचेगी. इन्होंने सूअर पालन को सिर्फ एक जाति के साथ जोड़कर रूढी बना दिया है इसे बिजनेस की तरह करने के बारे में कभी नहीं सोचा जबकि भारत के कई राज्यों में सवर्ण जातियों द्वारा किया जा रहा सूअर पालन बिजनेस काफी प्रगति पर है. 
          यह ऐसा बिजनेस है जिसमें कोई कॉम्पिटीशन नहीं है , रखरखाव सस्ता है. लेकिन इतना आसान भी नहीं है वैज्ञानिक ढंग से करने के लिए सजगता व समर्पण जरूरी है. 
......... Yes..!  We Can.........
नौकरी देने वाले बनो , मांगने वाले नहीं. बिजनेस करो.आर्थिक समृद्धि के बिना हमारा उद्घार नहीं.