खोने के लिए गुलामी की बेड़ियां और पाने के लिए सारा जहां


बहुजन समाज सदियों से कारीगरों, किसानों व मेहनतकश हुनरमंदों का समाज रहा है लेकिन इनकी क्षमता व प्रतिभा का कभी भी ढंग से उपयोग नहीं हो पाया और न सवर्ण समाज ने इन्हें विकास के ढांचे के साथ सक्रिय रूप से जोड़ा ,जिसके कारण बहुजनों को तो लाभ  नहीं मिला लेकिन कथित ऊंची जातियों ने भरपूर तिजोरियां भरी. सवर्णों ने समाजवादी व्यवस्था को मनुवादी समाजवादी व्यवस्था में बदल दिया. 
आज देश दुनिया में मुक्त अर्थव्यवस्था का माहौल है बहुजन समाज मार्केट का सबसे बड़ा ग्राहक हैं. वह इस इस विशाल मायावी मार्केट में घुसने की तैयारी कर रहा है. आज की ग्लोबल ईकोनॉमी ने  भारत के मार्केट के मनुवादी चरित्र को तहस नहस कर बहुजनों के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया है .मुक्त अर्थव्यवस्था ने ब्राह्मण बनिया व सामंती अर्थनीति पर चोट की है. बाजार का स्वरूप काफी बदल गया है. परम्परागत व्यापारी वर्ग से निकल कर बाजार व बिजनेस खुला होता जा रहा है. बिजनेस में जाति के बंधन टूट रहे हैं. ऐसे में बहुजनों को देर किए बिना प्राइवेट सेक्टर में कूद जाना चाहिए ,खोने के लिए अज्ञान व आर्थिक गुलामी की बेड़ियां है और पाने के लिए सारा  जहां है, सबकुछ है.
              देश में हर क्षेत्र के प्राइवेटाइजेशन की मार सबसे ज्यादा बहुजनों पर पड़ रही है ,आने वाले समय मे हमारे लिए हालात और भी बदतर हो जाएंगे. देखना! अगले कुछ सालों में ही देश में बहुजनों का अधिकारी वर्ग विलुप्त हो जाएगा जो बौद्धिक ताकत की भूमिका निभाता आ रहा है. देश के जातिवादी नेताओं व बुद्धजीवियों की साजिश पूर्ण नीतियों के कारण भारत में ही दलित पिछड़े आदिवासियों की दुश्मन बना दिया है. 
     हमारे पास ज्ञान, हुनर, क्षमता व वैज्ञानिक चेतना की कोई कमी नहीं है. बुद्ध, कबीर, रैदास,फुले बाबासाहेब जैसे आदर्श है जिनके मार्ग पर चल कर हम सामाजिक, सांस्कृतिक ,आर्थिक रूप से नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं. अब देर न करो. अपने आसपास जब भी, जहां भी मौका मिले तो उन अवसरों को गंवाए बिना कूद पड़ो. पूंजी कम है तो छोटी शुरुआत करो.   सब्जी.फल स्टेशनरी किराणा कपड़े की छोटी दुकान खोलो. एक बार अपने गांव, कस्बे,  शहर की कोलोनी में ग्राहक की बजाय व्यापारी की सोच लेकर जांच करो.  खेती, डेयरी, मूर्गी पालन, बकरी पालन को बिजनेस के लिहाज से देखो. दैनिक जरूरत की चीजों की सप्लाई, बीमा, पोस्ट ऑफिस बचत, ठेकेदारी, अपनी छोटी स्कूल, क्लीनिक, कोचिंग,आदि में बिजनेस की तलाश करना. हर जगह बिजनेस बिखरा पड़ा है .बस संभलकर करने की जरूरत हैनशे, फिजूलखर्ची, मंदिर, पूजापाठ, तीर्थयात्रा से दूर रहोगे तो बिजनेस के द्वारा आर्थिक आजादी आपके द्वार पर होगी. 
         अब समय ,धन व हुनर व ऊर्जा का सदुपयोग करना है. बारह महीने भाषणबाजी व सवर्णों को कोसने से कुछ लाभ नहीं होगा. हमारे सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक संगठनों के पदाधिकारियों व नेताओं को चाहिए कि वे हमारे बुनियादी मुद्दों के अलावा अपने स्वार्थ के लिए अन्य निरर्थक बातों में समाज को नहीं उलझाएं. गाली गलौज के मिशन में बहुजनों को नहीं झोंके. यदि हम आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हुए तो सारे संगठन, मंदिर, बुद्ध विहार धराशायी हो जाएंगे. आने वाली पीढियां हमें कोसेगी. आखिर हम विरासत मे क्या देकर जा रहे हैं? 
       बुद्ध ने सम्यक आजीविका के धन का स्वागत किया है और बाबासाहेब का भी यही सपना था कि बहुजन धनवान बनें.