भारत में बकरी पालन का व्यवसाय दलित व पिछड़ी जातियों के हिस्से में ही आया क्योंकि हेय माना जाता हैऔर इसमें ज्यादा मेहनत की जरूरत होती है इसलिए सवर्ण जातियों ने इसमें कभी रूचि नहीं ली. विचित्र बात यह है कि पशुपालन से संबंधित प्रोडक्ट्स जैसे दूध, घी,मावा, आइसक्रीम, लैदर शूज आदि के बिजनेस में सवर्ण व्यापारी बैठा बैठा अमीर बन जाता है लेकिन मेहनतकश पशुपालक आज भी गरीबी व अभावों का जीवन जी रहा है. चूंकि बकरीपालन मांस से जुड़ा व गरीबों का व्यवसाय है इसलिए धर्म के ठेकेदारों ने हमेशा इसका विरोध किया जबकि बकरी को गरीब की गाय माना जाता है. वे लोग गाय को तो माता मानते हैं लेकिन गरीब की गाय बकरी को दुश्मन.
बकरीपालन में रोजगार की अपार संभावनाएं है. यह गांवों की आर्थिक कायापलट कर सकता है. जितना अरब देश तेल से धन कमाते हैं उतना भारत बकरी पालन से कमा सकता है. लेकिन समाज व सरकार गरीबों के इस व्यवसाय पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती है जबकि गोशालाओं को हर साल करोड़ों रुपयों का अनुदान देती है. गरीब तो अपने बलबूते पर ही इस व्यवसाय को रूढिगत ढंग से कर रहा है. जबकि देशी गोपालन निरंतर कम हो रहा है और बकरी पालन बढ रहा है .भारत में अनपढ गरीबों ने अलग अलग इलाकों में बकरियों की सिरोही, जमनापारी, जखराना, बीटल, बरबरी, पश्मिना जैसी उम्दा नस्लें तैयार की है ऐसी प्रोडक्टिव ब्रीड्स दुनिया में और कहीं नहीं है. इससे दूध, मांस, पश्मिना रेशा, लैदर व खाद मिलता है. बकरी का दूध अब बहुत महंगे दामों में मिलता है.
दरअसल गरीबों ने बकरी पालन को वैज्ञानिक ढंग से नहीं किया और ऊपर से सरकारों व समाज ने दुत्कार दिया. जबकि इसमें कम पूंजी, कम जगह, कम समय में अधिक धन कमाया जा सकता है. घर की चौखट व बर्फीले पहाड़ों से लेकर गर्म रेतीले धोरों में इस बिजनेस को आसानी से किया जा सकता है. बकरी साल में दो बार ब्याती है, हर बार दो मैमने पैदा करती है. बकरी पालक के पास हर समय पैसे रहते हैं क्योंकि कभी दूध तो कभी बकरा या खाद बिकता रहता है.
बकरीपालक अपने बिजनेस का बॉस होता है क्योंकि उसे अपने प्रोडक्ट को लेकर खरीददार के पास ले जाना नहीं पड़ता है उल्टा खरीददार इसको हाथा जोड़ी करता है.
गांवों में बकरी पालन बहुत अवैज्ञानिक ढंग से किया जाता है फिर भी उनकी अच्छी आय होती है. खेती के उत्पादों में हमेशा जोखिम रहती है कभी प्याज टमाटर लहसुन के भाव आसमान पर तो कुछ दिनों बाद धड़ाम से जमीन पर. फिर बिचौलियों का वर्चस्व. लेकिन बकरीपालन से जुड़े हर प्रोडक्ट दूध, मांस, लैदर व खाद की मांग तेजी से बढ रही है तो उसकी कीमत भी हमेशा बढती रहती है कभी भी कम नहीं होती है. कितना भी प्रोडक्शन होगा सारा पशुपालक के द्वार पर ही पल भर में बिक जाता है .यदि आप बकरियां नहीं पालना चाहते हैं तो तीन महीने के कुछ मैमने खरीद कर चार महीने तक पालें फिर बेच दें, अच्छा मुनाफा होगा. इसमें न शॉप खोलना, न मंडी ले जाना, न बिचौलियों का शोषण और न ही जीएसटी का झंझट. खास बात यह भी कि इस बिजनेस में कॉम्पीटिशन नहीं है.
आज गांवों से जो लोग छोटी नौकरी व छोटी दुकान व हाड़तोड़ मजदूरी के लिए शहरों की ओर भाग रहे है. शिक्षित युवा पाच दस हजार रुपये की तनख्वाह के लिए शहरों में भटक रहे हैं उनके लिए बकरी पालन बहुत उम्दा बिजनेस हैं. याद रखना आज हम इस लाभकारी पुश्तैनी बिजनेस को छोड़कर शहर भाग रहे हो कुछ दिनों बाद हमारे गांव में ही पूंजीपति घरानों के बकरी फार्म खुलेंगे और हम ही वहां नौकरी के लिए हाथ जोड़ेंगे. क्योंकि हमारे सारे लाभकारी पुश्तैनी धंधों पर उनका कब्जा हो गया है जो इन व्यवसायों को कल तक घृणित समझते थे.आज देश की लैदर इंडस्ट्री पर किसका कब्जा है.
सरकारी नौकरियों के पीछे मत भागों, क्योंकि अब वह बहुत मुश्किल है. इसलिए अपने आसपास बिखरे प्रोडक्शन, सप्लाई, सर्विस, ट्रेडिंग आदि के बिजनेस को संभालो. नौकरी मांगने वाले नहीं, नौकरी देनेवाले बनो. आर्थिक समृद्धि के बिना हमारा उद्धार नहीं.
बकरीपालन: बहुत लाभकारी बिजनेस