भारत अंग्रेजो की लम्बी गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, आजादी की लड़ाई में असंख्य जनसमुदाय ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। ब्रिटेन की संसद में जुलाई के प्रथम सप्ताह में भारत स्वतंत्रता विधेयक पेश किया गया तथा 15 जुलाई, 1947 को ब्रिटेन की संसद ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया और इससे भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हो गया।ब्रिटेन की संसद ने यह तय कर दिया था कि भारत के भावी संविधान का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा नहीं वरन स्वयं भारतीयों द्वारा किया जाना चाहिए। भारत का भावी संविधान अनिवार्य रूप से भारतीय ही होना चाहिए। वह संविधान भारतीय आवश्यकतओं, उसकी परिस्थितियों तथा उसकी परंपराओं के अनुरूप हो।आवश्यक शर्त केवल यह है कि संविधान निर्मात्री संस्था का गठन भारत के सभी प्रमुख वर्गों की सहमति से से होना चाहिए। संविधान सभा में कुल 297 सदस्य चुने गये थे जिनमें देश के सभी क्षेत्रो, धर्मो, वर्गों, समुदायों व भाषाअें के गणमान्य व्यक्ति थे, जिनकी किसी न किसी रूप में देश के अन्दर अपनी अलग पहचान थी। कुछ तो देश की आजादी के कारक भी थे। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। संविधान के तैयार होने में 2 वर्ष 11 माह 17 दिन लगे।भारतीय वसंधिन विश्व का सबसे विस्तृत व लिखित संविधान है। संविधान निर्माताओं ने संसदीय लोकतंत्र को देश के लिए अधिक उपयुक्त माना जिसमें जनता के प्रति जबावदेह विधायिका, समर्पित कार्यपालिका व स्वतंत्र न्यायपालिका की परिकल्पना को साकार रूप प्रदान किया और यह अपेक्षा की थी कि लोकतंत्र में सŸा के तीनों स्तम्भ बिना किसी भेदभाव व पूर्वाग्रह के सभी को फलने फूलने का समान अवसर प्रदान करेंगे, इसलिए जहां संविधान में लोगों के मौलिक अधिकार निश्चित कर न्यायपालिका से उनकी सुरक्षा की कामना की गई है वहीं भविष्य की शासन व्यवस्था लोक
कल्याणकारी रहे इसकी भी अपेक्षा नीति निर्देशक तत्वों के जरिए की गई है।भारत में सदियों से असमानता, भेदभाव, शोषण व अन्याय पर टिकी वर्ण व जाति आधारित हिन्दू धर्म की समाज व्यवस्था को मौलिक अधिकारों ने ध्वस्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है। भारतीय संविधान के आर्टीकल 13 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व वे तमाम नियम, परम्पराएं व रूढ़ियां असंगत व शून्य ;टवपकद्ध समझी जायेंगी जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों में अवरोध का काम करती हैं। यह भी स्पष्ट किया गया है कि देश का कानून सभी के लिए समान हो और किसी नागरिक
को विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकेगा। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। सरकारी सेवा व लोक नियोजन के मामले में सभी को अवसर की समानता होगी लेकिन शैक्षिक व सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को सरकारी सेवा में उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु राज्य उपाय करेगा अनुच्छेद 17 के जरिये अस्पृश्यता का अन्त करते हुए यह संकल्प लिया है कि अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को मानना, मनवाना या थोपना एक दण्डनीय अपराध होगा। भारत केसभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ
शांतिपूर्वक संघ बनाने, सम्मेलन आयोजित करने, भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास करने, बसने अपनी मर्जी का वैध व्यवसाय व आजीविका का साधन अपनाने का अधिकार होगा। प्रत्येक व्यक्ति को जीने का अधिकार होगा। किसी भी नागरिक को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार न तो अभियोजित किया जायेगा और नहीं दण्डित ही किया जायेगा साथ ही उसे अपने विरूद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा। अकारण किसी नागरिक को गिरफ्तार नहीं किया जायेगा उसे अपनी प्रतिरक्षा व विधिक सहायता का अधिकार होगा। बिना सक्षम मजिस्ट्रेट की अनुमति के 24 घंटे से अधिक निरूद्ध नहीं किया जायेगा।शोषण के विरूद्ध अधिकार हेतु ब्लात श्रम व बेगार को अवैध व दंडनीय अपराध करार दिया गया है। यह भी व्यवस्था करने का आदेश है कि 14 वर्ष से कम आयु के बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जायेगा अथवा अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जायेगा। अप्रेल 2010 से 14 वर्ष तक के बच्चां के लिए मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के मौलिक अधिकार ने करोड़ों असहाय बच्चों को ज्ञान की रोशनी से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है।प्रत्येक नागरिक को अन्तःकरण की स्वतंत्रता का, धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने का अधिकार होगा। धार्मिक प्रयोजन के लिए संस्थाओं की स्थापना, उनके प्रबंधन, सम्पत्तियों के अर्जन व स्वामित्व का अधिकार होगा। भारत के राज्य क्षेत्र में अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाऐ रखने व भाषा या लिपी एवं शिक्षा की अभिवृद्धि के लिए कार्य करने का अधिकार होगा, धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना व इस प्रकार मौलिक अधिकारों के जरिये भरत के सभी नागरिकों को फलने फूलने के समान अवसर के साथ-साथ अभिव्यक्ति का अधिकार भी प्रदान किया गया है, धर्म की आड़ में सदियों से बेजुवान, बेबस बनाकर अर्द्ध मानव का जीवन जीने को मजबूर किये जाने वाले इस देश के बहुसंख्यक वर्ग को भी इस सुनहरी दुनिया को अपने नजरिए से देखने व परखने का अवसर प्राप्त हुआ है।
लोकतंत्र में वोट के जरिये शासक चुनने के अधिकार ने तुलसीदास के राम-चरित-मानस के जरिए यहां के बहुसंख्यक वर्ग को शास्वत गुलाम बनाएं रखने वाले इस कथन को ''कोऊ नृप होऊ, हमें का हानि, चेरी छोड़ नहीं होवहूँ रानी " को एक धोखा, प्रपंच, कुटिल नीति व षडयंत्र करार देने की मानसिकता के विकास का मार्ग प्रशस्त किया हैं।भारत एक संघीय गण राज्य है। राज्यों एवं केन्द्र के मध्य सामंजस्य एवं सŸा के संतुलन के लिए क्षेत्राधिकार का स्पष्ट उल्लेख भारतीय संविधान में किया गया है कई भाषाओं एवं संस्कृतियों के इस विशाल देश को एक सूत्र में बांधे रखने में अखिल भारतीय प्रशासनिक, पुलिस, राजस्व सेवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, राज्यों में प्रभावी राजनैतिक नेतृत्व ने अनेकता में एकता के सूत्र की लक्ष्मण रेखा को कभी लांघने का प्रयास नहीं किया है, चाहे बाहय आक्रमण हो अथवा प्राकृतिक विपदा सभी संकटों में राष्ट्रीय एकता की अनूठी मिशाल यहाँ के जन समुदाय ने पेश की है। जिस देश में सबसे अधिक लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीने को मजबूर हों और शिक्षा का भी अभाव हो, उस देश में लोकतंत्र की बुनियाद का मजबूरी से कायम रहना भारत के संविधान की ही देन कहा जा सकता है। नारी को अबला मानने वाले भारतीय जनमानस ने नारी को सŸा के शीर्ष पर आसीन कराने में जरा भी संकोच नहीं किया, यह भारतीय संविधान के करिश्माई तत्वों का ही परिणाम है। भारतीय संविधान ने जिस समता मूलक समाज की परिकल्पना की थी वह धीरे-धीरे मजबूती से अग्रसर
भारत का संविधान