दलित वर्ग विभिन्न जातियों में विभाजित होने की वजह से इनमें एकता स्थापित करना बहुत मुश्किल कार्य हो गया है। भारत की विविधता की तुलना संसार में एक ही देश से की जा सकती है वह है अमेरिका। जिस तरह से भारत आक्रान्ता तथा अप्रवासियों का देश है ठीक उसी प्रकार से अमेरिका भी अवस्थापकों (सेटलर्स) का राष्ट्र है। भारत में विभिन्न धर्मावलम्बी निवास करते हैं वैसा ही हाल अमेरिका का है। सबसे बड़ा अन्तर है कि भारत में हिन्दू बहुसंख्यक हैं परन्तु वो 6400 से अधिक जातियों में बंटे हुए हैं, परन्तु अधिकतर हिन्दुओं की प्रजाति (रेस) एक ही है जबकि अमेरिका में विभिन्न प्रजातियाँ हैं जैसे कि गोरे यूरोपियन, अमेरिकन अफ्रीकन (काले), हिस्पैनिक, एशियन, चीनी इत्यादि। अमेरिका में अन्तर्प्रजाति शादियाँ (जैसे कि गोरे-काले, काले-हिस्चैनिक इत्यादि) की संख्या 14-15% के लगभग होती हैं जबकि भारत में भी तकरीबन 9-10% शादियाँ अन्तर्जातिय होती है। 14-15% अन्तर्जाति शादियों में से अमेरिका में हर वर्ष कुल शादियाँ 48 लाख के आस पास होती हैं जिसमें तकरीबन 11% शादियाँ गोरे-कालों के मध्य होती हैं यानि कि हर 65 वीं शादी गोरे-कालों के मध्य होती है । काले-गोरों के मध्य हर तीन शादियों में से 2 शादियों में काला पति होगा तथा गोरी पत्नि जबकि एक शादी में गोरा पति और काली पत्नि होगी।
भारत में हर साल तकरीबन 90 लाख शादियाँ होती हैं जिनमें तकरीबन 8 लाख शादियाँ अन्तर्जातिय होती है जिनमें 99.93% शादियाँ उच्च जातियों के मध्य होती है। उच्च जाति एवं दलितों के मध्य लगभग 5800 शादियाँ ही होती है यानि कि हर 1500 शादियों में से एक शादी उच्च जाति व दलित के मध्य होती है। इस तरह की शादियों में से 80 प्रतिशत शादियाँ अनुलोम विवाह यानि कि उच्च जाति का पति तथा दलित पत्नि होती। प्रतिलोम विवाह यानि कि उच्च जाति की पत्नि तथा दलित पति, 5 में से 1 ही होता है।
इसका यह मतलब कतई नहीं है कि अमेरिकन समाज समतामूलक हो गया है। वहाँ पर आज भी काले अमेरिकन के लिए बहुत परेशानियाँ हैं, उनके साथ भेदभाव होता है परन्तु तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो काले अमेरिकन की हालत भारतीय दलितों से बहुत अच्छी है। वहाँ पर कालों को समान अवसर दिए जाते हैं यही कारण है कि हॉलीवुड की हर फिल्म में काले लोग जरूर नजर आएंगे जबकि बॉलीवुड में दलित ढूंढ़ने से नहीं मिलते हैं। कालों के लिए हर उद्योग खुला है जबकि यहाँ कुछ उद्योग जैसे कि होटल, रेस्टोरेन्ट इत्यादि अभी भी दलितों की पहुँच से बाहर हैं।
इसका तमाम कारणों में से एक अहम् कारण है कि बाइबल में अन्तर्प्रजातिय शादियों पर रोक नहीं है बल्कि उन्हें प्रोत्साहित किया गया है। प्रोफेट मोजेज ने एक इथोपियन (काली लड़की) से शादी की थी अतः ईसाइत में ऐसी शादियों पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। जबकि हिन्दू धर्म में वैदिक काल से ही अन्तर्जातीय शादियाँ प्रबन्धित तो नहीं की परन्तु ऐसी शादियाँ करने वालों को वर्ण से वहिस्कृत कर दिया जाता है तथा उनसे उत्पन्न संतान वर्ण संकर की श्रेणी में रखीं गईं और जो शूद्र जातियों में संभाली जाती थी जो की प्रतिबन्ध से भी अधिक सजा है।
इस तरह से हम देखते हैं कि ईसाइत ने प्रजातियों में भेद को खत्म करने तथा आपस में मातृत्व भावना विकसित करने का काम किया है।अमेरिका में ईसाइत ने अकल्पनीय काम किया है। कल के काले गुलाम आज अपनी मालकिन गोरी औरत के पति बन रहे हैं। हिन्दू धर्म ने एक ही प्रजाति को जातियों में बांटकर उसे विखण्डित कर दिया है। अन्तर्जातीय शादियों की बात तो दूर, मरने के बाद एक शमशान घाट पर जलाने तक नहीं दिया जाता है। मरने के बाद भी जाति पीछा नहीं छोड़ती है।जातियों से पैदा किये गए विखण्डन को धार्मिक भावना द्वारा विस्थापित किया जा सकता है। धर्म विभिन्न टुकड़ों को एक जोड़ने का रसायन साबित हो सकता है। धर्म में वह शक्ति है जो विभिन्न जातियों को एकत्रित कर सजातीय (होमोजिनियस) बनाया जा सकता है।
हमारा नया धर्म कौन सा होना चाहिए उस पर बहस करने का कोई खास कारण नहीं है। बुद्धिज्म दर्शन में व्यक्ति के कल्याण तथा मुक्ति के लिए उसकी जाति, वर्ण या प्रजाति बाधा नहीं हो सकती है। जब हमारे मार्गदाता बाबा साहब ने रास्ता बता दिया तो उस रास्ते पर संदेह करने का हमारे पास कोई भी उचित कारण नहीं है। पहले हमने बाबा साहब की बात नहीं मानी क्योंकि धर्म परिवर्तन के बाद आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा था। परन्तु 1990 के बाद धर्म परिवर्तित नव बौद्धों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल कर लिया है। अब हमारे पास धर्मान्तरण न करने की कोई बाजिव वजह नहीं रह जाती है। अतः हमको बुद्ध धर्म के धर्मान्तरण के विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
अगर हमको इस देश का शासक बनना है तो दलितों में एकता स्थापित करना आवश्यक है। दलितों की जातियों के विध्वंस धर्म द्वारा संभव है क्योंकि धर्म ही विभिन्न जातियों को समावेश करके सजातीयता की स्थापना कर सकता है। और अगर ऐसा होता है तो हमें शासक बनने से कोई नहीं रोक सकता।
-सुनीता अभिजीत
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