राजस्थान पत्रिका के संपादक के नाम पत्र

श्रीमान प्रधान संपादक महोदय, 
राजस्थान पत्रिका।



राजस्थान पत्रिका दिनांक 28 .04 .2020 में आपके लेखन " पुनर्विचार आवश्यक " में आपकी लेखनी को नमन, जिसमे आपने आरक्षण के विरुद्ध जमकर के भड़ास निकाली है। संविधान प्रदत्त अधिकार (अभिव्यक्ति का अधिकार)  से मुझे भी मेरे विचार रखने में आपको कोई आपत्ति नहीं होगी जो कि इस प्रकार है :- 
आपके लेखन के एक पैरा में आरक्षण को 70  साल का एक रोग बताया है। आपको विदित होना चाहिए कि आरक्षण रोग नहीं बल्कि सदियों से दमित व शोषित वर्ग जिसमे महिलाएं भी शामिल है, जिनके लगभग सभी मानवीय अधिकार वर्ण व्यवस्था ने छीन लिए थे, उनको हाशियें  में शामिल करने का एक छोटा सा प्रयास है और कुल मिलाकर कर उनका प्रतिधिनित्व सुनिश्चित करना है ( आर्टिकल 15  व 16 के अनुसार ),  न की एक रोग । और आपकी नज़र में अभी भी रोग है तो बेसक इसकी जड़ जातिवाद ही है । इसके लिए आपको शाहूजी महाराज का अध्ययन करना पड़ेगा ।आरक्षण एक अफर्मॅटिवे एक्शन है जो कि कई विकसित देशों में भी देखा जा सकता है । 
आपके अन्य एक पैरा में ये कथित है कि आरक्षण के आधार वर्तमान होना चाहिए , भूतकाल नहीं। लेकिन वर्तमान भी तो भूतकाल पर ही टिका रहता है। अगर भूतकाल की बू अभी भी वर्तमान तक में आ रही है तो बेशक भूतकाल ही आधार हो सकता है ।
आपके एक  पैरा में ये दर्शाया है कि आरक्षण के आधार जाति ही क्यों । इसमें क्या आप मुझे बता सकते है कि शोषण का आधार क्या था और क्या है। क्या आप बता सकते है कि छुआछुत व भेदभाव का आधार क्या है , तो फिर आरक्षण का आधार अलग कैसा कारगार होगा , ऐसा कई ख़बरों में देखा जा सकता है कि जाति विशेष ( वर्ण व्यवस्था के अनुसार निम्न जाति) का आदमी कितने ही ऊंचे पद पर विराजमान हो लेकिन कहीं न कहीं उसके साथ भी जातिगत भेदभाव की खबर आ ही जाती है। जाति को परिभाषित करने की जरुरत ही नहीं है वो तो अभी तक खून में बसी हुई है, जन्म से पहले और जन्म के बाद तक भी जाति नहीं जाती है और ये सदियों  का दंश है जिसको केवल और केवल जाति विशेष के लोग ही झेलते है । जातिवाद से आरक्षण है न कि आरक्षण से जातिवाद। और हाँ जातिवाद की जड़े केवल सरकारी नौकरी / संस्थाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि जीवन के अन्य सभी सामाजिक कार्यों में भी समाया हुआ है। जीवनयापन का साधन केवल सरकारी नौकरी ही नहीं है( जिसमे आरक्षण दिया हुआ है) बल्कि निजी क्षेत्र , उद्यमी,टेम्पल इंडस्ट्री, जमींदार, ठेकेदारी प्रथा जिसमे केवल कुछेक वर्ग का ही बोलबाला है,  से लेकर मज़दूर / गटर के नाले सफाई तक भी है जिसमे कोई आरक्षण की मांग नहीं करता और इसीलिए उसको केवल वर्ग विशेष तक ही सिमित कर दिया। आपके ऑफिस कि ही बात करू तो उच्च अधिकारीयों में कौन कौन सी वर्ग  के लोगों के हाथों में कमान दे रखी है। 
आपने लिखा है कि आरक्षण का घुन सात दशकों में देश की संस्कृति, समृद्धि , अभ्युदय को खा गया , कृपया आप बताएँगे की 70 साल से पहले कैसा अभ्युदय, संस्कृति थी  । शायद आपको पता होना चाहिए कि अंग्रेजों के समय " Dogs and Indians are Not Allowed  " लिखा देखा जाता था , या फिर किन्ही वर्ग विशेष के गले में हांड़ी और पीछे झाड़ू बांध दी जाती थी । और ऐसी संस्कृति की दुर्गन्ध आज भी कई जगह देखी जा सकती है जैसे शोषित वर्ग के दूल्हे हो घोड़ी से उतार देना, अमानवीय घटनाये जिनका जिक्र आपकी पत्रिका में भी एक छोटे से कॉलम में होता देखा जा सकता है, चाहे देर से ही सही । ये आरक्षण की ही देन है कि कुछेक शोषित व पिछड़े वर्ग के लोग आज आपके सामने बोलने और बैठने लायक हो सके है । आपकी ही पत्रिका में मेने पढ़ा है कि एक सर्वे के अनुसार सात पीढ़ी लगती है किसी गरीब को उभरने में , तो फिर 70 साल ही में क्यों बुदबुदाहट हो रही है । 
आपने वर्ण व्यवस्था को प्रकृतिदत्त बताया है , कृपया इतिहास पढोगे तो पता चलेगा कि वर्ण व्यवस्था व उनकी उपज सामाजिक कुरूतियों  के जनक कौन है , प्रकृति ने तो सबको मनुष्य बनाया है । आपने कृष्ण का उदाहरण भी दिया है लेकिन कर्ण का उदाहरण नहीं दिया इसके लिए राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना (रश्मिरथी) ही याद कर लीजिये ।
सदियों से पुरुष प्रधानता का दंश व सामाजिक कुरुतिओं को झेलती रही महिला आरक्षण पर भी आपने अंगुली उठायी है , कम से कम आरक्षण के बदौलत महिला सरपंच बन तो सकी, वरना उस चार दीवारी से बाहर ही नहीं निकल सकती थी और ऐसे कई उदाहरण भी है जिसमे महिला सरपंच  ने परचम लहराया है जैसे छवि राजावत (MBA महिला सरपंच, जिसके काम की  UN  ने भी सराहना की  है)।
आपने आरक्षण के माध्यम से गुणवत्ता , क्षमता , व्यवहार तीन भारत की बात की है , आप ही बताइये आरक्षण प्राप्त सरकारी नौकरों ने कितने विफल काम किये ( शायद न तो कोई पुल गिरा होगा और न कोई हॉस्पिटल की कोई अमानवीय घटना हुई होगी, भीलवाड़ा मॉडल तो आप देख ही सकते हो जिसकी खबर आपके मुख्य पृष्ठ पर न होकर मध्य में थी ), आप ही बताइये केंद्रीय विश्व विद्यालयों के कुलपतियों में कौन कौन किस वर्ग के है या कैबिनेट सेक्रटरी स्तर के आईएएस में किस किस वर्ग के कितने है और अभी आईएएस की लेटरल एंट्री में किस किस वर्ग के लोग है । उच्चतम व उच्च न्यायालय में कितने जज किस किस वर्ग के है (माफ़ी चाहूंगा न्यायालय के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ बल्कि आपकी लेखनी से मज़बूर होकर ये उदाहरण देना पड़ रहा है ) और व्यवहार की बात आ ही गयी तो देश की भोली भाली जनता का पैसा लूटकर विदेश भागने वालों में किस वर्ग के लोग है। मेरा अध्धयन कहता है कि आपको पिछड़े वर्ग के लोग इनमे शायद ही कोई मिले ।
आपके अन्य पैरा में ये कथित है कि बहुमत की सरकार अधिनायकवादी हो जाती है, मानवीय संवेदना खो बैठता है ,  क्रांति युवा वर्ग ही लाता  है लेकिन भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री जी जो कि भले ही सरकारी अफसर की सेवानिवृत आयु के ऊपर के है लेकिन जोश उनमे युवाओं के जोश से कम नहीं है और निर्णायक कार्य के लिए बहुमत की सरकार कि जरुरत पड़ती है ।
अंत में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और उसकी जिम्मेदारी जनता की बात सरकार तक और सरकार की बात जनता तक निष्पक्ष , तथ्यों सहित , सम्पूर्ण कर्तव्य परायण होकर पहुँचाना व सामाजिक मुद्दों को सही तरीके से उठाना है।  70 साल तक केवल ये बताया गया की इनकों आरक्षण दिया गया है लेकिन ये नहीं बताया गया कि क्यों दिया गया है और इसीलिए आज भी समता व समानता की कमी देखी जा रही है और इसमें इसमें आप जैसी पत्रिकारिताओं की कार्य निष्ठा की कमी हूबहू देखी जा सकती है । आपकी ही पत्रिका में अम्बेडकर  जयंती पर एक पुरानी फोटो (शायद संविधान दिवस की ) शेयर कर  जिसमे लोग गर्म कपडे, मफलर , गर्म टोपी पहने थे , उनको lockdown  का उल्लंघन करार दे दिया था , चाहे उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही ही क्यों न हो जाये , भले ही अगले दिन विरोध करने पर आपने एक छोटे से कॉलम में भूलचूक सुधार कर ली हो लेकिन इससे  आपकी मानसिकता का परिचय तो हो ही गया।  
आशा है कि आप अपनी भूल सुधार करेंगे। 


मैं आपकी पत्रिका का पिछले 12-13 साल से सतत पाठक रहा हूँ लेकिन अब मुझे कोई अन्य समाचार पत्र का चयन करना पड़ेगा।  



धन्यवाद 


                            आम नागरिक व आपका भूतपूर्व पाठक


                             -लेखराम वर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता,                                        जयपुर