प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति और लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति 

      भारत में ऐसे विद्वानों की कमी नहीं है जो प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का गुणगान करते नहीं थकते और लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति को पानी-पी पीकर गालियां देते हैं। ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन ने सन् 1835 ई. में भारत के लिये एक विधि आयोग का गठन किया था, जिसका अध्यक्ष बना कर लॅार्ड मैकाले को भारत भेजा। इसी वर्ष लार्ड मैकाले ने भारत में नई शिक्षा नीति की नींव रखी। 6 अक्टूबर 1860 को लॅार्ड मैकाले द्वारा लिखी गई भारतीय दण्ड संहिता लागू हुई।

 

लॅार्ड मैकाले (थॉमस बैबिग्टन मैकाले )

(25 अक्टूबर 1800-28 दिसम्बर 1859) 

       इसके पहले भारत में मनुस्मृति के काले कानून लागू थे, जिनके अनुसार अगर ब्राह्मण हत्या का आरोपी भी होता था तो उसे मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था और वेद वाक्य सुन लेने मात्र के अपराध में शूद्र के कानों में पिघलता सीसा डाल देने का प्रावधान था। वैसे तो अंग्रेज भी 1750 ई. तक लगभग आधे भारत पर शासन करने लग गये थे, परन्तु कानून तब भी मनुस्मृति के ही चलते थे। स्कूल 1833 ई. से ही अंग्रेजी सरकार द्वारा खोल दिये गये थे, परन्तु शूद्रों का प्रवेष तब भी वर्जित था। लॅार्ड मैकाले ने यहां का सामाजिक भेदभाव, शिक्षण में भेदभाव और दण्ड संहिता में भेदभाव देखकर ही आधुनिक शिक्षा पद्धति की नींव रखी और भारतीय दण्ड संहिता लिखी। जहां आधुनिक शिक्षा पद्धति में सबके लिये शिक्षा के द्वार खुले थे, वहीं भारतीय दण्ड संहिता के कानून ब्राह्मण और मेहतर, सबके लिये समान थे, जिसके चलते 1874 ई. में नन्द कुमार नामक ब्राह्मण को हत्या के आरोप में फाँसी की सजा दी। मनुस्मृति की व्यवस्था से ब्राह्मणों को इतनी महानता प्राप्त होती रही थी कि वे अपने आपको धरती का प्राणी होते हुए भी आसमानी पुरुष अर्थात् देवताओं के भी देव समझा करते थे। लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति से ब्राह्मणों को अपने सारे विशेषाधिकार छिनते नजर आये, इसी कारण से उन्होनें प्राण-प्रण से इस नीति का विरोध किया।           

    इनकी नजर में लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति केवल बाबू बनाने की शिक्षा देती है, पर मेरा मानना है कि लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से बाबू तो बन सकते हैं, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति से तो वो भी नहीं बन सके। हाँ, ब्राह्मण सब कुछ बन सके थे, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नहीं। अन्य जातियों के लिये तो ये रास्ते बन्द ही थे। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के समर्थक यह बताने का कष्ट करेंगे कि किस काल में किस राजा के यहाँ कोई भंगी, चमार, मोची, बैरवा, बलाई,रैगर, भांभी, कोली, धोबी, मीणा, नाई, कुम्हार, खाती या इसी प्रकार कोई भी अनुसूचित जाति, जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति मंत्री, पेशकार, महामंत्री या सलाहकार रहा हो ? अतः इन जातियों के लिये तो यह शिक्षा पद्धति कोहनी पर लगा गुड़ ही साबित हुई। ऐसी पद्धति की लाख अच्छाईयां रही होंगी, पर यदि हमें पढ़ाया ही नहीं जाता हो, गुरुकुलों में प्रवेश ही नहीं होता हो तो हमारे किस काम की ?    

      सरसरी तौर पर इन दोनों शिक्षा पद्धतियों में तुलना करते हैं। फिर आप स्वयं ही निर्णय ले सकते है कि कौनसी शिक्षा पद्धति कैसी है?

प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति

1. इसका आधार प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ रहे।

2. इसमें शिक्षा मात्र ब्राह्मणों द्वारा दी जाती थी।

3. इसमें शिक्षा पाने के अधिकारी मात्र सवर्ण ही होते थे।

4. इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड का बोलबाला रहता था।

5. इसमें धर्मिक ग्रन्थ, देवी-देवताओं की कहानियां, चिकित्सा, भेषजी, कला और तंत्र, मंत्र, ज्योतिष, जादू टोना आदि शामिल रहे हैं।

6. इसका माध्यम मुख्यतः संस्कृत रहता था।

7. इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों का अभाव रहता था, अथवा अतिश्योक्ति पूर्ण ढंग से बात कही जाती थी। जैसेः-राम ने हजारों वर्ष राज किया, भारत जम्बू द्वीप में था, कुंभकर्ण का शरीर कई  योजन था, कोटि-कोटि सेना लड़ी, आदि।

8. इस नीति के तहत कभी ऐसा कोई गुरुकुल या विद्यालय नहीं खोला गया, जिसमें सभी वर्णों और जातियों के बच्चे पढ़तें हों।

9. इस शिक्षा नीति ने कोई आंंदोलन खड़ा नही किया, बल्कि लोगों को अंधविश्वासी, धर्मप्राण, अतार्किक और सब  कुछ भगवान पर छोड़ देने वाला ही बनाया।  

10. यह गुरुकुलों में लागू होती थी। वैसे नालन्दा, तक्षषिला और विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी हुए, पर शिक्षा की प्रणाली में कोई अन्तर नहीं था।

11. गुरुकुलों में प्रवेश से पूर्व छात्र का यज्ञोपवीत संस्कार अनिवार्य था। चूंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों में शूद्रों का यज्ञोपवीत संस्कार वर्जित है, अतः शूद्र व दलित तो इसको ग्रहण ही नहीं कर सकते थे। अतः इनके लिये यह किसी काम की नही रही।  12. इसमें तर्क का कोई स्थान नहीं था। धर्म और कर्मकाण्ड पर तर्क करने वाले को नास्तिक का करार दे दिया जाता था। जैसे चार्वाक, तथागत बुद्ध और इसी तरह अन्य।

13. इस प्रणाली में चतुर्वर्ण समानता का सिद्धान्त नहीं रहा।

14. प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में दलित विरोधी भावनाऐं प्रबलता से रही हैं। जैसे कि एकलव्य का अंगूठा काटना, शम्बूक की हत्या, आदि।

15. इससे हम विश्व से परिचित नहीं हो पाते थे। मात्र भारत और उसकी महिमा ही गाये जाते थे।

16. इसमें वर्ण व्यवस्था का वर्चस्व था।

लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति 

1. इसका आधार तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार उत्पन्न आवश्यकताएं रही। 

2. लॅार्ड मैकाले ने शिक्षक भर्ती की नई व्यवस्था की, जिसमें हर जाति व धर्म का व्यक्ति शिक्षक बन सकता था।  

    तभी तो रामजी सकपाल (बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर के पिताजी) सेना में शिक्षक बने।

3. जो भी शिक्षा को ग्रहण करने की इच्छा और क्षमता रखता है, वह इसे ग्रहण कर सकता है। 

4. इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड के बजाय तार्किकता को महत्त्व दिया जाता है। 

5. इसमें इतिहास, कला, भूगोल, भाषा-विज्ञान, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा, प्रबन्धन और अनेक  

आधुनिक विधायें शामिल हैं।

6. इसका माध्यम प्रारम्भ में अंग्रेजी भाषा रही। बाद में इसके साथ-साथ सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाऐं हो गईं।

7. इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों की प्रचुरता रहती है और अतिश्योक्ति पूर्ण या अविश्सनीय बातों का कोई स्थान नहीं होता है।

8. इस नीति के तहत सर्व प्रथम 1835 से 1853 तक लगभग प्रत्येक जिले में एक स्कूल खोला गया। आज यही कार्य राज्य और केंद्र सरकारें कर रही हैं। साथ ही कई निजी संस्थाएं भी कर रही हैं। 

9. दुनिया के कई देशों में क्रांतियां इसीलिये हो पाई कि आम जनता पढ़ी-लिखी थी। भारत में स्वाधीनता आंदोलन खड़ा हुआ, उसमें लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति का बहुत भारी योगदान रहा, क्योंकि जो लोग पढ़े-लिखे थे, उन्हें देश-विदेश की जानकारी मिलने लगी, जो इस आंदोलन में सहायक रही। 

10. यह विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लागू होती आई है।

11. इसको ग्रहण करने में किसी तरह की कोई पाबन्दी नहीं रही, अतः यह सबके लिये सर्वसुलभ रही। अगर शूद्रों  और दलितों का भला किसी शिक्षा से हुआ तो वह लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से ही हुआ। इसी से पढ़-लिख कर बाबा साहेब अम्बेडकर, डॉक्टर बने। 

12. इसमें तर्क को पूरा स्थान दिया गया है। धर्म अथवा आस्तिकता-नास्तिकता से इसका कोई वास्ता नहीं है।

13. यह गरीब निम्नवर्गीर्य व्यक्ति से लेकर उच्चवर्गीय तक सब के लिये सुलभ है।

14. इसमें सर्व वर्ण व सर्व धर्म समान हैं। आदिवासी और मूलनिवासी भी इसमें शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन जहां-जहां संकीर्ण मानसिकता वाले ब्राह्मणवादियों का वर्चस्व बढा है, उन्होनें इसमें भी दलितों को शिक्षा से वंचित किया है।

15. इससे हम आधुनिक विश्व से सरलता से परिचित हो रहे हैं।

16. इसमें सभी जातियां, वर्ण और धर्म समान हैं।

    अब फैसला प्रबुद्ध पाठकों को करना है कि कौनसी शिक्षा पद्धति अच्छी है ?


-श्याम सुन्दर बैरवा